उत्तराखंड में तकरीबन 104 सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र हैं। लगभग 85 प्रशिक्षण केंद्र (आईटीआई) ऐसे भी हैं जो पीपीपी (सरकारी -निजी भागीदारी) के तहत चलते हैं। इनमें तिब्बतन संस्थानों द्वारा चलाए जा रहे केंद्र भी शामिल हैं। ये सब आईटीआई संस्थाएं मिलकर हर साल करीब 30 हजार नौजवानों को विभिन्न हुनर सिखाती हैं। इनमें वेल्डिंग, प्लंबिंग, मशीन टूल, होटल उद्योग और निर्माण क्षेत्र प्रबंधन आदि शामिल हैं। ये सूची और भी लंबी है और खुशी की बात है कि उसमें इजाफा हो रहा है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार राज्य की कुल रोजगार संभावना और अप्रेंटिसशिप अवसरों के बीच उचित तालमेल बिठा पा रही है? जवाब देना मुश्किल है क्योंकि उपयुक्त आंकड़े उपलब्ध ही नहीं हैं। यहां रेखांकित करना जरूरी है कि आईटीआई संस्थाएं तकनीकी शिक्षा विभाग के तहत आती हैं और उद्योग मंत्रालय व श्रम मंत्रालय के साथ उनकी जुगलबंदी बेहद जरूरी है। आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में तो बाकायदा अनुसंधान के जरिये यह आंकड़ा हासिल करने की कोशिश की गई कि आईटीआई से निकलने के बाद अगले तीन साल तक ग्रेजुएट क्या-क्या करते हैं। ऐसी जानकारी उपलब्ध होने के बाद विभिन्न संस्थानों के लिए अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि रोजगार के बाजार में उनका तकनीकी प्रशिक्षण कितना उपयोगी साबित हो रहा है। आईटीआई से निकले नौजवानों की काबिलियत को आंकने में यह जानकारी बहुत मदद करती है।
इस बीच टीम लीज यूनिवर्सिटी ने अप्रेंटिसशिप विषय पर एक रिपोर्ट जारी कर बताया है कि राज्य सरकारों को अप्रेंटिसशिप सृजन को रोजगार सृजन जितना ही महत्व देना चाहिए। दरअसल अप्रेंटिसशिप रोजगार की पहली सीढ़ी ही है। यह रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत अपने प्रशिक्षण प्राप्त नौजवानों को नियमित रोजगार उपलब्ध नहीं करा पा रहा। रिपोर्ट में अगले दस साल में एक करोड़ अप्रेंटिसशिप अवसरों का सृजन करने के लक्ष्य की बात कही गई है। अगर वाकई ऐसा होता है तो इंडस्ट्री और तकनीकी प्रशिक्षण स्केटरों के बीच दूरी काफी कम हो जाएगी।
बहरहाल, मकसद सिर्फ समस्या का विश्लेषण करना नहीं, पुख्ता सुझाव भी पेश करना है। लिहाजा मैं राज्य सरकार के लिए निम्नलिखित पांच एक्शन प्वाइंट का प्रस्ताव रखता हूं:
1- आज केवल इससे बात नहीं बनेगी कि उद्योग मंत्रालय और इंडस्ट्री चैंबरों का संवाद करवाकर सरकार अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ले। जरूरत इस बात की है कि आईटीआई संस्थाओं को भी इस प्रक्रिया में सीधे भागीदारी का मौका मिले। इसके लिए तकनीकी शिक्षा विभाग और श्रम मंत्रालय को प्रक्रिया में शामिल करना होगा। जिस तरह राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) एक निश्चित अवधि के बाद बैठक कर समीक्षा करती है कि क्रेटिड-डिपॉजिट रेशियो (ऋण जमा अनुपात) कितनी रही और राज्य की अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों में बैंकों की कितनी धनराशि उधार दी गई, ठीक उसी तरह एक नियमित अवधि के बाद ये मंत्रालय बैठक कर समीक्षा करें कि इंडस्ट्री को किस तरह के कामगारों की जरूरत है और आईटीआई संस्थान किस हद तक उनकी जरूरत पूरी कर पा रहे हैं।
- दूसरा बिंदु। उद्योगजगत को वर्ष 1961 के अप्रेंटिसशिप कानून की पूरी जानकारी होनी चाहिए। इससे ज्यादा अहम बात, वर्ष 2019 में अप्रेंटिसशिप नियमों में हुए सुधारों की भी जानकारी सबको हो, यह सुनिश्चित होना चाहिए।। इन सुधारों के बाद अब औद्योगिक संस्थान कुल कामगार संख्या के 15 फीसदी तक अप्रेंटिस रख सकते हैं। उनका स्टाइपेंड (अनुग्रह राशि) नौ हजार रुपये प्रतिमाह तक किया जा सकता है। अलबत्ता जैसा कि टीम लीज यूनिवर्सिटी बता रही है, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्य ही अप्रेंटिस की संख्या बढ़ाने को लेकर गंभीर हैं। बाकी राज्य इस मोर्चे पर पिछड़ रहे हैं। दुर्भाग्य से उत्तराखंड भी इनमें शामिल है।
- उत्तराखंड को एक तकनीकी समिति का गठन करना चाहिए। उसका काम होगा जिला स्तर पर अप्रेंटिसशिप की संभावनाओं का आकलन करना। खासतौर पर मैन्युफैक्चरिंग, सूचना तकनीक, होटल इंडस्ट्री, कंस्ट्रक्शन उद्योग और स्वास्थ्य एवं वेलनेस सेक्टर में अप्रेंटिसशिप की संभावनाएं तलाशनी होंगी। क्योंकि आजकल हर आय वर्ग के नौजवान अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर बिताते हैं, यह बड़ा रोचक होगा कि प्रस्तावित तकनीकी समिति बाकायदा एक एप बनाए कि कहां कितनी अप्रेंटिसशिप वैकेंसी मौजूद है।
- राज्य सरकार कारखानों और औद्योगिक संस्थानों के लिए एक प्रोत्साहन योजना की घोषणा कर सकती है। मतलब अप्रेंटिसशिप के मौके देने वाली कंपनियों को कोई रियायत या इनाम दिया जाए। कम से कम सम्मान तो राज्य सरकार दे ही सकती है। गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस पर हम ऐसी कंपनियों और कारखानों को अवार्ड दे सकते हैं। अप्रेंटिसशिप एक्ट के मुताबिक पूरी गंभीरता से काम करने वाली कंपनियां अगर राज्यपाल या मुख्यमंत्री के हाथों सम्मानित हों तो उन्हें कितना अच्छा लगेगा!
- सुधार की शुरुआत सरकार को अपने ही संस्थानों से करनी चाहिए। देखना होगा कि जीएमवीएन से लेकर यूपीसीएल तक हमारे तमाम संस्थान कितने नौजवानों को अप्रेंटिसशिप पर रख रहे हैं। मेरा विन्रम सुझाव है कि राज्य सरकार पहल करे और आने वाले वर्षों में पूरे देश को दिखाए कि उत्तराखंड औद्योगिक उत्पादन में ही नहीं, अप्रेंटिसशिप सरीखे अवसरों के उत्पादन में भी अव्वल हो सकता है।
क्या है अप्रेंटिसशिप
कारखानों और औद्योगिक संस्थानों में नौजवानों को एक निश्चित अवधि के लिए दिए जाने वाला मौका, जिसमें वे काम सीखने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रख सकते हैं और स्टाइपेंड के रूप में कुछ धनराशि भी कमा सकते हैं।