20 हजार लोगों की प्यास बुझा रहे पुनाड़ गदेरे को प्लास्टिक कचरे से मुक्त कर संरक्षित किया जाएगा। अमर उजाला हिमालय बचाओ अभियान -2022 के तहत आयोजित संवाद कार्यक्रम में यह संकल्प लिया गया। कार्यक्रम में मौजूद रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने यह संकल्प सभी को दिलाया। विशेषज्ञों ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए छोटी-छोटी कोशिशें करनी होगी तभी हिमालय सुरक्षित हो सकता है। अनूप नेगी मेमोरियल पब्लिक स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए स्थानीय स्तर पर प्रयास करने होंगे। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इस तरह से किया जाए कि संतुलन बना रहे। उन्होंने कहा कि स्कूल के 10 छात्र-छात्राओं को पर्यावरणीय अध्ययन के लिए तैयार किया जाएगा। उन्होंने हिमालय क्षेत्र में प्लास्टिक के प्रयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने पर जोर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य देवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि हिमालय बचाओ अभियान नई पीढ़ी को प्रेरित कर जनजागृति फैलाने में मील का पत्थर साबित होगा। विशेषज्ञों ने कहा कि हिमालय पर्वत श्रृंखलाएं अभी अपने यौवनकाल में हैं। मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने से हिमालय की पारिस्थितिकी में बदलाव हो रहा है जो खतरनाक है। उन्होंने इको क्लब गठित कर प्राकृतिक जलस्रोतों के संरक्षण, बंजर खेतों को आबाद करने, हिमालय से लगे मठ-मंदिरों व बुग्यालों में बढ़ती मानवीय गतिविधियों को कम करने, बुग्यालों को सुरक्षित करने, वर्षा जल का संरक्षण और वनाग्नि को न्यून करने की बात कही। साथ ही बस्ती क्षेत्रों में कूड़ा के उचित निस्तारण पर जोर दिया। विशेषज्ञों ने छात्र-छात्राओं से बातचीत करते हुए उनके सवालों के जवाब भी दिए। कार्यक्रम का संचालन शिक्षिका सुमन लता देवली ने किया। इस दौरान चेयरमैन आलोक नेगी, प्रबंधक सच्चिदानंद देवली, मीना भारती, आरती बुटोला, आरती बर्त्वाल, विमल नेगी, विकास कुमार, प्रकाश राणा, प्रवीण नैनवाल और छात्र-छात्राएं मौजूद थे।
लोकल वार्मिंग बन रही बड़ा संकट
जीव विज्ञान की शिक्षिका चंद्रकला जगवाण ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग से अधिक बड़ी समस्या लोकल वार्मिंग की हो रही है। पर्यटन व तीर्थाटन के नाम पर उमड़ रही भीड़ का सीधा असर प्रकृति और पर्यावरण पर पड़ रहा है। घरों में पैकेट बंद दूध के उपयोग के दौरान जो प्लास्टिक का छोटा सा टुकड़ा इधर-उधर फेंक दिया जाता है वही कई बार ड्रेनेज सिस्टम को ठप कर देता है। इसलिए जरूरी है कि घर से ही पर्यावरण संरक्षण के लिए पहल शुरू हो। उन्होंने स्थानीय स्तर पर पर्यावरण से जुड़े पहलुओं के बारे में भी बताया।
गढ़वाली गीत से बयां किए हालात
कक्षा 8वीं की छात्रा प्रथा देवली ने गढ़वाली गीत के जरिये जल, जंगल और जमीन की मानव जीवन में भूमिका बताई। धरती की हरियाली के लिए पौधारोपण को जरूरी बताते हुए वनों के कटान और आग से होने वाली क्षति को भी बयां किया।
जीवन का आधार है पुनाड़ गदेरा
रुद्रप्रयाग। कार्यक्रम में जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग की जलापूर्ति करने वाले पुनाड़ गदेरा की साफ-सफाई और संरक्षण का संकल्प लिया गया। जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने इसके लिए कार्यक्रम में मौजूद विशेषज्ञों और छात्रों को शपथ दिलाई। उन्होंने कहा कि पुनाड़ गदेरा रुद्रप्रयाग नगर के जीवन का आधार है। चरणबद्ध तरीके से गदेरे को स्रोत से नगर तक प्लास्टिक मुक्त कर संरक्षित किया जाएगा। इस कार्य में सभी का सहयोग लिया जाएगा।
विशेषज्ञों ने रखी मन की बात
उत्तराखंड में 64 फीसदी वन क्षेत्र है और 1500 ग्लेशियर हैं। इन अनुपम धरोहरों को संरक्षित कर प्रकृति, प्राण और प्राणी के हिसाब से विकास योजनाएं बननी चाहिए। साथ ही वनों को आग से बचाने के लिए सामूहिक भागीदारी होनी चाहिए। इस वर्ष फायर सीजन में उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से 50 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हुआ जो किसी भी स्तर पर शुभ नहीं है। भूटान की तर्ज पर हमें भी भारत को कार्बन न्यूट्रल देश बनाने के लिए एकजुट होकर प्रयास करने होंगे। – देव राघवेंद्र सिंह चौधरी, पर्यावरण विशेषज्ञ एवं शोधकर्ता, रुद्रप्रयाग।
विकास के नाम पर हिमालय की तलहटी को कंक्रीट का जंगल बनाया जा रहा है जो वहां के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। बीते एक दशक में देखे तो केदारनाथ क्षेत्र में मंदाकिनी नदी के दोनों तरफ भूस्खलन बढ़ा है जिसे रोकने के लिए सार्थक प्रयास होने चाहिए। माटी की परत को मजबूत बनाने के लिए विभिन्न प्रजाति के पौधों और जड़ी-बूटी का रोपण कर उनका संरक्षण प्राथमिकता से किया जाना चाहिए। – चंद्र सिंह नेगी, पर्यावरण एवं आध्यात्म प्रेमी, अगस्त्यमुनि
क्षमता से अधिक किसी वस्तु, स्थान का उपयोग होगा तो उसके परिणाम भयानक ही होंगे। यही, हिमालय और उसके प्राकृतिक संसाधनों के साथ हो रहा है। पर्यटन व तीर्थाटन के नाम पर पहुंच रही भीड़ प्रकृति को जिस तरह से रौंद रही है वह हिमालय और हिमालयवासियों के लिए बड़ा संकट बन रही है। पहाड़, जलधारे और पर्वतों को नजदीक से समझकर उन्हें उनके वास्तविक रूप में रहने से ही पर्यावरण संरक्षण होगा। हमने 2013 की केदारनाथ आपदा से भी सबक नहीं लिया है। कार्बन का उत्सर्जन कम से कम हो, इसके लिए सार्वजनिक वाहन व्यवस्था को बढ़ावा देना होगा। – डा. वीर विक्रम भारती, सहायक प्राध्यापक डिग्री कॉलेज रुद्रप्रयाग
हिमालय को बचाने के लिए हमें स्वयं को बदलना होगा। छोटी-छोटी कोशिशों से घर के आंगन से स्कूल परिसर, रास्तों व खेतों को हरियाली से जोड़ना होगा। पुराने पौराणिक जलस्रोतों का जीवंत करने के लिए बंजर खेतों को आबाद करने के लिए वृक्ष खेती अपनानी होगी। हमें पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन की जानकारी तो है लेकिन हम इसे लेकर जीना नहीं चाहते हैं। हिमालय से लगे गांवों से पलायन न हो इसके लिए ठोस हिमालय नीति बनानी होगी। – महावीर सिंह जगवाण, आजीविका व पर्यावरण के जानकार, तिलवाड़ा (रुद्रप्रयाग)
छात्र-छात्राओं के सुझाव
गाड़-गदेरों, नदियों का निरंतर बहाव बना रहे। इसके लिए स्थानीय स्तर पर मिलकर कार्य करने की जरूरत है। साथ ही कूड़े-कचरे के प्रबंधन के लिए घर से ठोस पहल होनी चाहिए, तभी सही अर्थों में हिमालय को बचाया जा सकता है। – अदिति, कक्षा 9
जल, जंगल और जमीन का सद्पयोग ही पर्यावरण संरक्षण है। विदेशों की योजनाएं और नीतियों के बजाय स्थानीय हालातों और संभावनाओं को ध्यान में रखकर विकास योजनाएं बनाई जानी चाहिए। साथ ही उस विकास योजना से प्रकृति और उसके घटकों को कितनी क्षति पहुंच रही है, उसकी पूर्ति के लिए भी एक समयसीमा तय होनी बहुत जरूरी है। – प्रिंस, कक्षा 12
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