Tuesday, January 21, 2025
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शहीद चंद्रशेखर: पथराई आंखों से 38 साल किया पति का इंतजार, पत्नी बोली- विश्वास था अंतिम दर्शन जरूर करूंगी

शहीद चंद्रशेखर हर्बोला की पत्नी शांति देवी ने अपने पति के पार्थिव शरीर का इंतजार 38 साल किया है। उन्हें इस बात का विश्वास था कि वह अपने पति के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन जरूर करेंगी। शांति देवी ने बताया कि जब उनके पति शहीद हुए तब उनकी (शांति देवी की) उम्र सिर्फ 28 साल थी। कम उम्र में ही उन्होंने जीवनसाथी को खो दिया और दोनों बेटियों को मां और पिता बनकर पाला। इस दौरान सेना की ओर से उन्हें पूरी मदद दी गई जिस वजह से परिवार के पालन पोषण में उन्हें काफी मदद मिली। बेटियों के पास पिता से जुड़ी यादें याद नहीं हैं क्योंकि दोनों ही बेटियां बहुत छोटी थीं। बड़ी बेटी की उम्र उस समय सिर्फ साढे़ चार साल और छोटी बेटी की उम्र सिर्फ डेढ़ साल थी। शांति देवी ने बताया कि जब जनवरी 1984 में वह अंतिम बार घर आए थे तब वादा करके गए थे, इस बार जल्दी लौट आऊंगा। हालांकि उन्होंने परिवार के साथ किए वादे की जगह देश के साथ किए गए वादे को ज्यादा तरजीह दी।
शांति देवी ने बताया कि 38 साल तक हर रोज कहीं न कहीं ये बात जेहन में रहती थी कि कभी भी उनके पति को लेकर कोई खबर आ सकती है। आखिरकार आजादी के अमृत महोत्सव से ठीक एक दिन पहले मां भारती के सपूत के अंतिम बलिदान की सूचना आई। लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला अंतिम बार परिवार में अपने छोटे भाई पूरन चंद्र हर्बोला से लेह लद्दाख में मिले थे। उनके भाई चार कुमाऊं रेजीमेंट में हैं। यह मुलाकात मार्च 1984 में हुई थी। इसके बाद परिवार के किसी भी व्यक्ति से उनकी बात भी नहीं हुई थी। इसके अलावा उनके दो और भाई हैं। उस समय दूरसंचार सेवाएं आज की तरह आधुनिक नहीं थीं। उनकी पत्नी शांति देवी को 29 मई 1984 को टेलीग्राम से पति के शहीद होने की सूचना मिली थी। उस समय वह द्वाराहाट स्थित अपनी ससुराल में थीं। शहीद का एक भांजा बीसी पंत भी सेना में हैं। हल्द्वानी में शहीद की वीरांगना शांति देवी के साथ उनकी बेटी कविता पांडे अपने बच्चों के साथ रहती हैं। उनके पति ऑस्ट्रेलिया में नौकरी करते हैं। उनकी एक और बेटी बबीता गुरूरानी है। शहीद लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला जनवरी 1984 में अंतिम बार द्वाराहाट स्थित अपने गांव आए थे। उनकी अपनी पत्नी और दोनों बेटियों के साथ यह अंतिम मुलाकात थी। उनके शहीद होने के बाद 1995 में उनका परिवार हल्द्वानी आकर रहने लगा था।

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