रुद्रपुर। कृषि प्रधान जिले ऊधमसिंह नगर में एक दशक से भूजल स्तर में गिरावट की समस्या देखी जा रही है। तराई में भूजल स्तर को बचाए रखने के लिए सरकार पिछले करीब चार सालों से किसानों को बेमौसमी धान के स्थान पर मक्के की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है लेकिन किसानों का तर्क है कि मक्के का उचित दाम न मिलने व विपणन व्यवस्था मजबूत न होने से मक्के की खेती फायदेमंद साबित नहीं हो रही है। कृषि विभाग ने जिले में करीब तीन साल पहले मक्के की खेती को बढ़ावा देने को लेकर ट्रायल भी शुरू किया था। किसानों ने करीब 5000 हेक्टेयर कृषि भूमि पर मक्के की खेती की लेकिन कोरोना महामारी के चलते किसानों को मक्के का उचित मूल्य नहीं मिल सका। सिडकुल की कुछ कंपनियों और आढ़तियों ने किसानों का मक्का बेहद कम दामों पर खरीदा था। इस वजह से कई किसानों की लागत भी नहीं निकल सकी थी। इसके बाद किसानों ने भी मक्के की खेती में रुचि दिखाना कम कर दिया। इस ज्वलंत मुद्दे पर जिले के कुछ किसानों ने अपनी राय साझा की। तराई में गिरते भूजल स्तर को बचाने के लिए बेमौसमी धान के स्थान पर मक्के की खेती को बढ़ावा दिया जाना अत्यंत आवश्यक है लेकिन यह तब होगा जब मक्के की खेती से किसानों की बेहतर आमदनी हो। – सलविंदर कलसी।
भूजल संकट की समस्या को देखते हुए बेमौसमी धान का विकल्प मक्के की खेती है। रुद्रपुर के फौजी मटकोटा गांव में अधिकतर किसान मक्के की खेती कर भी रहे हैं। मक्का का मूल्य धान के समान होना चाहिए। – चंद्रकला चौहान।
बेमौसमी धान की खेती की अपेक्षा मक्के की खेती अधिक सुविधाजनक है। इसमें सिंचाई के साथ ही अन्य कृषि लागत भी बेहद कम है। इससे किसानों की कम लागत में अधिक आय हो सकती है। – कामेश्वर जेटली।
धान और गेहूं की भांति मक्के व गन्ने की भी मजबूत विपणन व्यवस्था एवं उचित समर्थन मूल्य मिलने लगेगा तो किसान खुद ही बेमौसमी धान की खेती करना बंद कर देंगे। मक्के के लिए मटर आदि की तरह मंडी की व्यवस्था भी होनी चाहिए। – अमृतपाल सिंह।
मक्के का उचित मूल्य मिले तो बेमौसमी धान से कर लेंगे तौबा
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