धामी सरकार के वरिष्ठ मंत्री सतपाल महाराज खुश हैं कि मुख्यमंत्री ने सचिवों की एसीआर लिखने के अधिकार के संबंध में मुख्य सचिव से प्रस्ताव मांगा है। लेकिन प्रदेश की नौकरशाही को यह बात नहीं सुहा रही है। ज्यादातर नौकरशाह मंत्रियों को एसीआर लिखने की आजादी देने के पक्ष में नहीं हैं। दबी जुबान वे कह रहे हैं कि सैद्धांतिक रूप से बेशक मंत्रियों को अधिकार देना सही हो, लेकिन व्यावहारिक दृष्टि से ही यह उचित नहीं होगा। उनकी राय में इसके लिए यह जरूरी है कि लोकशाही में लोकतांत्रिक परिपक्वता हो। लोकशाही बनाम नौकरशाही के बीच एसीआर के अधिकार को लेकर चल रही यह कश्मकश ऐसे वक्त में चल रही है जब राज्य 22 साल का हो चुका है।
सीएम के पास है अधिकार
स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने पहले सिविल सर्वेंट्स को जब संबोधित किया था, तब उन्होंने लोक सेवकों से राजनीतिक तटस्थता, भ्रष्टाचार और साहबों वाली मानसिकता से दूरी की अपेक्षा की थी। मगर आज तक लोकशाही और नौकरशाही के रिश्तों में मिठास और खटास का अतिरेक देखने को मिल ही जाता है। उत्तराखंड की मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था में सचिवों की एसीआर लिखने का अधिकार मुख्यमंत्री के पास है। मुख्य सचिव उनके प्रतिवेदक और समीक्षक अधिकारी हैं। यानी वे उनकी एसीआर की समीक्षा करते हैं और मुख्यमंत्री स्वीकारता अधिकारी हैं। राज्य में यह व्यवस्था संभवतः बहुगुणा सरकार के समय बनी।
अनुभवी अफसरों की एक टीम
इससे पहले मंत्री ही सचिवों की एसीआर लिखते थे। अमर उजाला से नाम गोपनीय रखने की शर्त पर कुछ नौकरशाहों ने इस मसले पर अपनी राय साझा की। उनका मानना है कि मुख्यमंत्री के पास अधिकार होना इसलिए व्यावहारिक है, क्योंकि उनके पास अनुभवी अफसरों की एक टीम होती है, जिनसे वे रायशुमारी करने के बाद सही निर्णय पर पहुंच सकते हैं। वे यह भी कहते हैं कि मंत्रियों को यह लगता है कि एसीआर का अधिकार होने से नौकरशाही उनके इशारे पर थिरकेगी। वे जो चाहे वो करा सकेंगे।
एसीआर बिगड़ी तो कैरियर खराब
नौकरशाहों के कैरियर में एसीआर के खास मायने हैं। एसीआर की बदौलत ही वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के योग्य बनते हैं। एसीआर खराब होने पर उनके कैरियर में रुकावट का खतरा बन जाता है।
महाराज ने छेड़ा अभियान
कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने मंत्रियों की एसीआर लिखने के अधिकार पाने की जिद पकड़ रखी है। त्रिवेंद्र-तीरथ सरकार से लेकर धामी सरकार तक वह यह मांग उठाते रहे हैं। एक तरह से उन्होंने इसके लिए अभियान छेड़ रखा है। इन कालखंड़ों में उनकी अपने विभाग के सचिवों से तनातनी रही है। वर्तमान में भी वह अपने विभागीय सचिव की कार्यशैली से खुश नहीं माने जा रहे हैं। जानकारों का मानना है कि मंत्री अपने सचिवों को काबू में रखने के लिए एसीआर की लगाम चाहते हैं। मंत्रियों का तर्क है कि बेलगाम नौकरशाही के लिए उन्हें अधिकार मिलना चाहिए।
दुरुपयोग न हो तो दिया जा सकता है अधिकार
पूर्व नौकरशाह इंदु कुमार पांडेय कहते हैं कि केंद्र सरकार और उत्तरप्रदेश सरकार में सचिवों की एसीआर मंत्री ही लिखते हैं। सैद्धांतिक रूप से यह बात सही है कि मंत्री ही सचिवों का बॉस है। उन्हें उनके फैसलों को बदलने का अधिकार है। लेकिन यह भी देखना होगा कि यह कितना व्यावहारिक है। जिन राज्यों में सचिवों की एसीआर मंत्री लिख रहे हैं, वहां की व्यवस्था का अध्ययन कर लेना चाहिए। यह जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं।
मंत्रियों को एसीआर लिखने का अधिकार देने के पक्ष में नहीं नौकरशाह, पढ़ें क्या मानते हैं जानकार
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