उत्तराखंड में अगर भाजपा और कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो फिर सत्ता की राह निर्दलीयों और छोटे दलों के बीच से होकर गुजर सकती है। ऐसे में सरकार बनाने की गणित में इन पर भी भाजपा और कांग्रेस की नजर रहेगी। मतदान के बाद हालांकि, भाजपा व कांग्रेस के नेता पूर्णमत का दावा कर रहे हैं लेकिन मतगणना के बाद क्या तस्वीर उभरकर आती है, इस पर दोनों दलों की पैनी निगाह रहेगी। उत्तराखंड के पिछले चार चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो हर बार निर्दलीय प्रत्याशी जीत कर भी आए हैं।
वर्ष 2002 के विस चुनाव में चार तो 2007 और 2012 में तीन-तीन निर्दलीय जीते थे। 2017 में मोदी लहर के बावजूद दो निर्दलीय जीतने में सफल रहे। यही आंकड़े यदि इस बार के चुनाव में भी रहते हैं तो फिर ऐसे जिताऊ निर्दलीयों का कद बढ़ सकता है। भाजपा और कांग्रेस के नेता आजकल इसी गुणा-भाग में लगे हैं दोनों दलों के नेताओं में चर्चा है कि अगर किसी वजह से पूर्ण बहुमत नहीं मिलता तो इस दशा में निर्दलीयों के माध्यम से सत्ता की सीढ़ी चढ़ी जा सकती है। चुनाव में यमुनोत्री से संजय डोभाल, केदारनाथ से कुलदीप रावत, रुद्रपुर से राजकुमार ठुकराल, देवप्रयाग से यूकेडी दिवाकर भट्ट और खानपुर से उमेश कुमार को भाजपा व कांग्रेस दोनों ही मुकाबले में मान रही हैं। ऐसे में दलों की नजरें इन पर टिकी हैं। दोनों दलों के नेता उक्त प्रत्याशियों को बधाई देना भी नहीं भूल रहे हैं।
सरकार बनाने को जिताऊ निर्दलीयों पर BJP-कांग्रेस दलों की नजर
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