हिमालयी राज्य के परंपरागत मोटे अनाजों की पौष्टिकता व गुणवत्ता उच्चस्तर की है। दक्षिण के बाद उत्तर भारत में स्थानीय अनाज, उनसे बनी डिश व अन्य पकवानों पर किए गए अनूठे शोध ने उपेक्षा से बेजार मोटे अनाजों की महत्ता बढ़ा दी है।
ताजा परीक्षण रिपोर्ट के मुताबिक पकाने के बावजूद मोटे अनाजों में मौजूद विटामिंस व अन्य पोषकतत्व खत्म नहीं होते। कच्चे अनाज व उनसे बने पकवानों पर अनुसंधान व निष्कर्ष से उत्साहित विज्ञानियों ने इन्हें ‘सुपरफूड’ की संज्ञा दी है। साथ ही राज्य सरकार से उपेक्षित मोटे अनाजों को राशन वितरण प्रणाली व मध्याह्न भोजन योजना में शामिल करने की सिफारिश की है। साथ ही पकाने की विधि को संरक्षित करने की भी सलाह दी है। हाल के वर्षों में परंपरागत अनाजों को छोड़ बाजार के हाइब्रिड उतादों पर निर्भरता बढ़ी है। हिमालयी राज्य में परंपरागत भोजन के पोषकीय स्थिति को जानने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी एवं नेचुरल रिसोर्स डेटा मैनेजमेंट सिस्टम के तहत जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के विज्ञानियों ने अनूठा शोध किया। दूर गांवों में जाकर खासतौर पर अनुसूचित समाज को चुना गया। वहां पकवानों की पौष्टिकता का गहन अध्ययन किया।
पहाड़ के मोटे अनाज पर विज्ञानियों को बड़ा नाज, सुपरफूड हैं उत्तराखंड के जैविक खाद्यान्न
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