71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में निकट भविष्य में वन सीमा को लेकर वन एवं राजस्व विभाग के मध्य विवाद खत्म होंगे। इसके समाधान के लिए वन विभाग ने अपने अधीन संपूर्ण भूमि का डिजिटाइजेशन कराने का निर्णय लिया है। इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस क्षेत्र में जंगल की सीमा कहां-कहां तक है, जो डिजिटल प्लेटफार्म पर उपलब्ध होगी।
प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैंपा) की नए वित्तीय वर्ष की कार्ययोजना में प्रमुखता से यह विषय शामिल किया जा रहा है। वार्षिक कार्ययोजना जल्द ही शासन के माध्यम से अनुमोदन के लिए राष्ट्रीय कैंपा को भेजी जाएगी।
प्रदेश में वन सीमा भले ही पूर्व से निर्धारित हो, लेकिन आबादी से लगे वन क्षेत्रों में इसे लेकर अक्सर विवाद की स्थिति रहती है। यद्यपि, वन सीमा पर वन विभाग ने मुनारें लगाई हैं, लेकिन कई जगह ये गायब हो चुकी हैं। ऐसे में वन सीमा से सटे क्षेत्रों की भूमि वन अथवा राजस्व किसके अधीन है, इसे लेकर विवाद होते आए हैं। विशेषकर, वन भूमि में अतिक्रमण के मामलों का इसी कारण निस्तारण लटका रहता है। प्रदेशभर में नौ हजार हेक्टेयर से अधिक वन भूमि से अतिक्रमण न हट पाना इसका उदाहरण है। इस सबको देखते हुए वन विभाग ने अपने अधीन वन भूमि का डिजिटाइजेशन का निश्चय किया है। वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) विनोद कुमार सिंघल के अनुसार वन सीमाएं डिजिटल प्लेटफार्म में दिखेंगी तो इससे विवाद तो खत्म होंगे ही, अनुश्रवण भी ठीक से हो सकेगा। कैंपा की नए वित्तीय वर्ष की कार्ययोजना में इसके मंजूर होने पर वन भूमि के डिजिटाइजेशन का कार्य तेजी से होगा।
300 करोड़ की वार्षिक कार्ययोजना
राज्य में कैंपा की नए वित्तीय वर्ष की कार्ययोजना लगभग 300 करोड़ की होगी। जल्द ही कार्ययोजना को राज्य स्तरीय कमेटी से अनुमोदित कराकर इसे अनुमोदन के लिए राष्ट्रीय कैंपा को भेजा जाएगा।
वन व राजस्व के बीच खत्म होंगे सीमा विवाद, डिजिटल प्लेटफार्म पर उपलब्ध होगी जंगल की सीमा
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