रविवार की सुबह दुनिया भर निगाहें पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में इमरान खान के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर लगी हुई थीं और लोग इमरान खान की सरकार के भविष्य के बारे में कयास लगा रहे थे, लेकिन नेशनल एसेंबली के डिप्टी स्पीकर ने अविश्वास प्रस्ताव को ही विदेशी साजिश के आधार पर असांविधानिक बताकर खारिज कर दिया। उसके तुरंत बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने न केवल राष्ट्रपति को संसद भंग करने की सलाह दी, बल्कि राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बताया कि अमेरिका के साथ विपक्षी पार्टियां हमारे खिलाफ साजिश कर रही थीं। असल में इमरान खान ने चतुर राजनेता की तरह एक सोझी-समझी चाल चली है, क्योंकि वह जानते हैं कि पाकिस्तान के लोगों को अब अमेरिका फूटी आंखों भी नहीं सुहाता है। इसलिए इमरान खान ने सोच-समझकर अमेरिका का नाम लिया है कि वही मुल्क के भ्रष्ट विपक्षी नेताओं के साथ साजिश करके हमारी सरकार को गिराना चाहता था। लेकिन कोई विदेशी मुल्क नहीं, बल्कि पाकिस्तान की जनता यह तय करेगी कि पाकिस्तान में कौन शासन करेगा।उधर अमेरिकी भी जानते हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान ने नहीं, बल्कि पाकिस्तान ने ही अमेरिका की नाक कटवाई है। अमेरिका जानता है कि तालिबान भी पाकिस्तान का ही पाला-पोसा हुआ है। इसलिए अब अमेरिका पाकिस्तान को सहायता भी नहीं देता है। लेकिन पाकिस्तान ऐसा मुल्क है, जो हमेशा किसी न किसी मुल्क की मदद के भरोसे रहता आया है। अपने बूते वह कुछ नहीं करना चाहता। पहले वह अमेरिकी आर्थिक मदद के लिए मोहताज रहता था, अब वह चीन से पैसे ले रहा है। लेकिन यहां यह बात ध्यान में रखनी होगी कि पाकिस्तान की सेना अमेरिका को नाराज नहीं करना चाहती है, क्योंकि पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों का काफी कुछ अमेरिका में दांव पर लगा है। उनके बच्चे अमेरिका में रह और पढ़ रहे हैं, उनके पास अमेरिकी ग्रीन कार्ड हैं और वहां कई जनरलों के व्यवसाय चल रहे हैं। इसलिए फिलहाल चुप दिख रही पाकिस्तान की सेना आगे कौन-सा कदम उठाती है, यह देखने वाली बात होगी।
जहां तक चीन के साथ पाकिस्तान की दोस्ती की बात है, तो उन दोनों के बीच दोस्ती की शुरुआत 1963 से ही शुरू हो गई थी। मार्च, 1963 में पाकिस्तान ने पीओके के गिलगित-बालटिस्तान का एक इलाका चीन को उपहार में दे दिया था, जहां चीन ने सड़कें और रेल लाइन बना ली हैं। गिलगित-बालटिस्तान में चीन एक कॉरिडोर बना चुका है, जिसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा कहा जाता है और उस गलियारे को ग्वादर पोर्ट से जोड़ने की चीन की योजना है। चीन हमेशा से चाहता है कि पाकिस्तान भारत को परेशान करता रहे, ताकि भारत आगे न बढ़ सके। पाकिस्तान के इस ताजा घटनाक्रम से भारत में कुछ भी बदलने वाला नहीं है, क्योंकि वहां सरकार चाहे किसी भी आए, वह भारत के लिए मुश्किलें ही खड़ी करती रहेगी। लेकिन जब तक पाकिस्तान में यह उथल-पुथल चलती रहेगी, तब तक भारत के लिए यह अच्छा ही रहेगा। जैसे ही पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिरता आती है, वह भारत के खिलाफ साजिशें रचने लगता है और भारत विरोधी कार्रवाई को बढ़ावा देने लगता है।
भारत में जो लोग यह सोचते हैं कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सेना का शासन पर कब्जा हो जाएगा, तो यह ठीक नहीं होगा, उन्हें यह सोचना चाहिए कि पाकिस्तान के साथ जब-जब हमारा कोई समझौता हुआ है, वह सैन्य नेतृत्व ने ही किया है। वहां की असैन्य सरकारों से भारत को कुछ भी नहीं मिला है। चाहे वह सिंधु जल बंटवारे का समझौता हो या नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का समझौता हो, सब में वहां के सैन्य नेतृत्व की ही प्रमुख भूमिका रही है। भले ही इमरान खान ने कहा हो कि सेना ने नहीं, भ्रष्ट विपक्षी पार्टियों ने विदेशी ताकत के साथ मिलकर उन्हें सत्ता से हटाने के लिए साजिश रची, लेकिन यह बात जग जाहिर है कि सेना इमरान खान सरकार से नाराज चल रही है। इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान की राजनीति में वहां की सेना की बड़ी भूमिका रहती है और इमरान खान की सरकार बनी भी इसलिए कि सेना की उन्हें मदद मिल रही थी। भले ही ताजा मामले में पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान ने अभी तक सीधे दखल नहीं दिया है, लेकिन वह वहां के हालात के और बदतर होने का इंतजार कर रहा है, ताकि वहां की अवाम खुलकर सेना से कहे कि इन राजनेताओं से मुल्क नहीं संभलने वाला, आप ही मुल्क संभालो। पाकिस्तान में जब भी सेना ने सत्ता पर कब्जा किया है, तो वह वहां की जनता के इशारे पर ही किया है।
इमरान जो बार-बार विपक्षी पार्टी के नेताओं को भ्रष्ट बता रहे हैं, उसके भी निहितार्थ हैं। वाकई में वहां के राजनेता भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। लेकिन इमरान खान पर या उनकी सरकार पर अभी तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। बहुत संभव है कि इमरान खान बार-बार विपक्षी नेताओं को भ्रष्ट बताकर पाकिस्तानी जनता को यह संदेश देना चाहते हों कि अब आपको ही सोचना है कि मुल्क की जिम्मेदारी इन भ्रष्ट लोगों के हाथों में सौंपनी है या एक ईमानदार नेता के हाथों में। इसलिए ऐसा बयान देते हुए उन्होंने जनता से कहा है कि वे चुनाव की तैयारी शुरू कर दें।बेशक पाकिस्तान के राष्ट्रपति डॉ. आरिफ अल्वी ने प्रधानमंत्री इमरान खान की संसद भंग करने की सिफारिश को मंजूरी दे दी है, लेकिन अभी इस खेल में कई पेच हैं। समाज के विभिन्न हलकों से इमरान खान की आलोचना होने लगी है और इसे संविधान का उल्लंघन बताया जा रहा है। लोगों ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल देने और पाकिस्तान को मौजूदा संकट से बाहर निकालने की अपील की है।
ऐसी भी खबरें हैं कि नेशनल असेंबली भंग किए जाने के बाद पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने शीर्ष अदालत के जजों को अपने आवास पर बुलाया है। उधर पाकिस्तान के डिप्टी अटॉर्नी जनरल राजा खालिद ने इस्तीफा देते हुए कहा है कि ‘इमरान खान सरकार ने पाकिस्तान के संविधान के साथ छेड़छाड़ की है। इमरान खान ने संविधान के साथ जो किया, वैसा किसी तानाशाह ने भी नहीं किया था। जो कुछ भी हुआ, वह अवैध और असांविधानिक है। ऐसी भी चर्चा है कि सेना वहां राहिल शरीफ को राष्ट्रपति बनाना चाह रही है। इसलिए अभी आगे-आगे देखिए कि होता है क्या!
पाकिस्तान का सियासी संकट: सारी निगाहें फौज पर
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