काशीपुर। सोना उगल रही कुमाऊं की गौला और कोसी नदियों में खनन को लेकर वर्चस्व की लड़ाई दशकों पुरानी है। खनन को लेकर सबसे ज्यादा हत्याएं हल्द्वानी और किच्छा में र्हुइं हैं। पिछले ढाई दशक में 23 लोग खनन की रंजिश में जान गंवा चुके हैं। काशीपुर, रामनगर और बाजपुर में भी खनन को लेकर गोलीबारी की घटनाएं आम हैं।
खनन के कारोबार में वर्चस्व को लेकर संघर्ष का केंद्र हल्द्वानी की गौला नदी रही। जनवरी 1999 में काठगोदाम के शीशमहल निवासी पवन जोशी और उसके भाई विनीत जोशी की हत्या कर दी गई। तब इस दोहरे हत्याकांड में रमेश बंबइया गैंग का नाम सामने आया था। 11 दिसंबर 1999 को गौला नदी में पांच मजदूरों समेत आठ लोगों को खनन की रंजिश में जान से हाथ धोना पड़ा था। मृतकों में जुनैद आलम, असलम, ईशरत अली, मोहम्मद इस्लाम, खलील आदि शामिल थे। इस सामूहिक हत्याकांड में बनभूलपुरा निवासी निसार खान उर्फ गुड्डू, गुलजार खान उर्फ पप्पू और भूरा आदि का नाम प्रकाश में आया था। 9 मई 2002 को नैनीताल के जिला सत्र न्यायाधीश ने आरोपियों को कसूरवार ठहराते हुए आजीवन कारावास और दस हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ आरोपी अपील में चले गए। बाद में निसार खान और उसके भाइयों की भी हत्या हो गई। 28 सितंबर, 2001 को किच्छा के शांतिपुरी नंबर दो में खनन के विवाद में हरीश रावत की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस घटना में योगेंद्र चौहान भी घायल हुआ था। दो माह बाद 28 दिसंबर को मोहन सिंह व नवीन तिवारी की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई। इसी रंजिश में एक अक्तूबर 2003 को योगेंद्र सिंह चौहान को भी खनन कारोबारियों ने गोलियों से भून दिया। 2009 में किच्छा के ही रोहित तिवारी को मार दिया गया, जबकि 13 दिसंबर 2009 को ही शार्प शूटर प्रताप बिष्ट को सरेआम गोलियों से भून दिया गया। दो सितंबर 2018 को रामनगर के बीडीसी सदस्य और खनन कारोबारी वीरेंद्र सिंह मनराल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। 14 अगस्त 2020 को रामनगर पीरुमदारा के ग्राम लोकमानपुर निवासी अमनदीप सिंह चीमा की जान चली गई। 26 अप्रैल की रात बाजपुर के ग्राम पिपलिया में खनन को लेकर हुए खूनी संघर्ष में कुलवंत की मौत हो गई, जबकि तीन अन्य घायल हो गए।
पट्टों पर खदान के ठेके को लेकर भी रहता है विवाद
काशीपुर। निजी भूमि पर खनन के पट्टे लेकर ठेके पर दिए जाने से भी कारोबारियों के बीच रंजिश बढ़ रही है। अक्सर ठेकेदार पट्टे की भूमि से उपखनिज का खदान तो कर लेते हैं, लेकिन किसान को भुगतान करते समय उनके बीच विवाद हो जाता है। ऐसे कई मामलों को लेकर मारपीट और मुकदमेबाजी होने की बात सामने आती रही है। खदान के घनमीटर को लेकर भी अक्सर विवाद पैदा हो जाता है। कुछ लोगों ने अपने स्टोन क्रशर भी ठेके पर दिए हुए हैं। इस धंधे में कोई वैध लिखा-पढ़ी नहीं होती है। इस कारण ऐसे विवादों को लेकर मामले पंचायतों मेें आते रहते हैं। छोई स्थित स्टोन क्रशर का मामला एक दिन पूर्व कथित रूप से पंचायत में सुलझा लिया गया था लेकिन बाद में लेनदेन को लेकर परिणति खूनी संघर्ष के रूप में सामने आई। संवाद
ढाई दशक में गोला और कोसी ने ले ली 23 जानों
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