पिथौरागढ़। पिथौरागढ़ जिले की जीवन रेखा कहलाने वाली घाट-पिथौरागढ़ सड़क बंद होने से सीमांत जिले में कालापानी जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। सड़क बंद होने से पिथौरागढ़ से लेकर धारचूला तक लगभग आधा सीमांत जिला पूरी तरह से अलग-थलग पड़ जाता है। दूध, सब्जी, रसोई गैस, डीजल-पेट्रोल तक की आपूर्ति पूरी तरह से ठप हो जाती है। आपात स्थिति में थल-मुवानी-बेड़ीनाग-सेराघाट सड़क ही उम्मीद रहती है लेकिन इस सड़क के भी बंद होने पर पांच लाख से अधिक की आबादी के पास यातायात का कोई विकल्प नहीं रहता है।
वर्ष 1956 में पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय सड़क से जुड़ा तो ट्रकों से जरूरी सामान पिथौरागढ़ पहुंचने लगा। वर्ष 1962 में धारचूला के लिए सड़क का निर्माण किया गया। शुरुआत में घाट-पिथौरागढ़ एनएच सिंगल लेन था। इसके बावजूद यह सड़क चीन और नेपाल से सटे सीमांत जिले के लिए जीवन रेखा साबित हुई। हालांकि बरसात में मलबा आने और पहाड़ों के टूटने से लोगों को कई परेशानियों से जूझना पड़ता था। धौली गंगा जल विद्युत परियोजना निर्माण के समय वर्ष 1990 के दशक में ट्रॉलों में भारी भरकम मशीनों को लाने के लिए टनकपुर से लेकर धारचूला के छिरकिला तक मोड़ों की कटिंग की गई। इस सिंगल लेन सड़क निर्माण के लगभग 60 साल बाद टनकपुर से पिथौरागढ़ तक चौड़ीकरण कर बारहमासी सड़क बना दिया गया है। इसके बावजूद बरसात में सीमांत के लोगों की चिंता कम नहीं हुई हैं।
घाट से लेकर पिथौरागढ़ तक दिल्ली बैंड, चुपकोट बैंड और गुरना के पास तक एक दर्जन स्थान ऐसे हैं जहां पर पहाड़ी से भूस्खलन का खतरा बना रहता है। यह पहाड़ियों इतनी संवेदनशील हैं कि एक बार भूस्खलन होने पर सैकड़ों टन मलबा सड़क पर आ जाता है। ऐसे में सड़क खुलने में एक से लेकर तीन दिन तक लग जाते हैं।
100 किमी घूमकर पहुंचना पड़ता है हल्द्वानी
पिथौरागढ़। पिथौरागढ़ जिले को शहरी क्षेत्रों से दो सड़कें जोड़ती हैं। इनमें पिथौरागढ़-घाट सड़क टनकपुर और हल्द्वानी को तो दूसरी सड़क बेड़ीनाग के गणाईगंगोली-सेराघाट होकर हल्द्वानी की ओर जाती है। बारहमासी सड़क के बंद होने की स्थिति में सेराघाट सड़क ही आवाजाही का एकमात्र विकल्प रहता है लेकिन जिले की आधी से अधिक की आबादी केवल आपात स्थिति में ही इस सड़क का उपयोग करती है क्योंकि इस सड़क मार्ग से 100 किमी का अतिरिक्त फेरा लगाकर गंतव्य तक पहुंचना पड़ता है।बारहमासी सड़क बनने के बाद भी यातायात की सुविधा नहीं मिल पा रही है। कभी पिथौरागढ़-घाट के बीच में तो कभी चंपावत जिले के स्वाला सहित अन्य स्थानों में एनएच बंद हो जाता है। – भगवान रावत, जनमंच, पिथौरागढ़।
पिछले साल घाट के पास सड़क बंद होने से तीन रातें सड़क किनारे खड़े वाहन में ही गुजारनी पड़ी थी। करीब 150 से अधिक ट्रक कई दिनों तक रास्ते में ही फंसे रह गए थे। – कैलाश चंद्र, वाहन संचालन।
अधिकारी का पक्ष
पिथौरागढ़-घाट एनएच में कुछ संवेदनशील स्थान हैं जहां पर बरसात में मलबा आने की आशंका रहती है। मलबा आने पर समय से सड़क खोलने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाते हैं। बरसात में यदि किसी स्थान पर मलबा आता है तो जल्द से जल्द सड़क खोलने के प्रयास किए जाएंगे ताकि लोगों को परेशानी न उठानी पड़े। – बीएल चौधरी, एई एनएच खंड, पिथौरागढ़।
मानसून काल में दशकों से कालापानी जैसे हालात से जूझते हैं सीमांत के लोग
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