Saturday, November 2, 2024
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अब जिले भर के स्कूलों में सुनाई देगा जनकवि गिर्दा का गीत

नैनीताल। जल्द ही जिले के प्राइमरी स्कूलों से लेकर इंटरमीडिएट कॉलेजों तक में सुबह की प्रार्थना सभा में प्रसिद्ध जनकवि स्व. गिरीश तिवारी गिर्दा का प्रसिद्ध गीत उत्तराखंड मेरी मातृ भूमि, मातृ भूमि मेरी पितृ भूमि… के स्वर गूंजते सुनाई देंगे। इसके लिए डीएम ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को जरूरी कवायद करने के निर्देश दिए हैं।
जिलाधिकारी गर्ब्याल का कहना है कि अगर हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखना है तो इसके लिए स्कूली बच्चों को संस्कृति और परंपरा का ज्ञान कराना होगा। गिर्दा की कविता उत्तराखंड मेरी मातृभूमि… से स्कूली बच्चों को अपने राज्य, अपनी मातृभूमि, पितरों की भूमि, हिमालय पर्वत, तराई से लेकर भाबर तक के महत्व, बदरीनाथ, केदारनाथ, कनखल और हरिद्वार के अलावा कैलाश पर्वत के महत्व को भी समझने में मदद मिलेगी। इसलिए गिर्दा के गीत को प्रार्थना सभा में लागू करने के साथ ही कुमाऊंनी भाषा की पुस्तकों को कक्षा एक से लेकर पांचवीं तक लागू कराया जाएगा। यह किताबें जिले के पर्वतीय ब्लाकों के स्कूलों में लागू कराई जाएंगी। इससे बच्चों को कुमाऊंनी भाषा का ज्ञान होगा। उन्होंने बताया कि कुमाऊंनी भाषा की ये पुस्तकें कुछ साल पहले जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में विषय विशेषज्ञों ने तैयार की थीं जो अभी तक पाठ्यक्रम में शामिल नहीं हो सकीं।
गिर्दा के गीतों ने कई आंदोलनों को दी थी धार
नैनीताल। उत्तराखंड के प्रमुख गायक, गीतकार, पटकथा लेखक, निर्देशक, जनकवि, राज्य आंदोलनकारी और समाजसेवी गिरीश तिवारी गिर्दा का जन्म 10 सितंबर 1945 को अल्मोड़ा के ज्योली गांव में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय नैनीताल के कैलाखान क्षेत्र में ही गुजारा। शुरुआती वर्षों में गिर्दा ने लोनिवि और विद्युत विभाग के अलावा गीत एवं नाटक प्रभाग में भी नौकरी की, लेकिन नौकरी में कभी मन नहीं लगा। वह सामाजिक गतिविधियों में रम गए। अपने गीतों से उन्होंने नशा नहीं रोजगार दो, चिपको आंदोलन, उत्तराखंड राज्य आंदोलन और नदी बचाओ आंदोलन को धार दी। गिर्दा के गीत आमजन को सामाजिक व्यवस्थाओं के बाबत सोचने पर मजबूर कर देते थे। 22 अगस्त 2010 को वह हम सबसे हमेशा के लिए दूर हो गए।
जनकवि गिर्दा की कविता जो स्कूलों की प्रार्थना में गूंजेंगी
उत्तराखंड मेरी मातृभूमि-मातृभूमि, मेरी पितृभूमि
ओ भूमि तेरी जै-जै कारा म्यार हिमाला।
ख्वार मुकुट तेरी ह्युं झलको
झलकी गाल गंगे की धारा, म्यार हिमाला।
तली तली तराई कुनी-कुनी मली मली भाभरा म्यार हिमाला ।
बद्री केदारा का द्वार छना, छना कनखल हरिद्वारा, म्यार हिमाला।
काली धौली का छाना जानी, जानी नान ठुला कैलाशा, म्यार हिमाला ।
पार्वती को मैत या छो, या छो शिवजयू को सौरसा , म्यार हिमाला।
धन मयेङी मेरो यो जनमा, भई तेरी कोखी महाना , म्यार हिमाला।
मरी जूलो, तरी जूलो, इजु ऐल त्यारा बाना, म्यार हिमाला।

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