खटीमा। भीषण गर्मी में शीतल जल के लिए मशहूर मिट्टी के घड़ों, बर्तनों का कारोबार कुम्हारों की माली हाथ में सुधार नहीं कर पा रहा है। कुम्हारों के मिट्टी के कारोबार की रीढ़ माने जाने घड़ों में इस बार टोटी वाले घड़ों के मार्केट में आने से बिक्री में कुछ अंतर पड़ा है। संसाधनों के अभाव में मिट्टी के बर्तनों का कारोबार जरूरत के अनुसार नहीं चल पा रहा है।
कुम्हारों की मानें तो प्रदेश सरकार देश के अन्य प्रदेशों की तरह उन्हें सुविधा नहीं दे पा रही है। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर तो यहां है लेकिन उनके पास संसाधनों का अभाव है। मिट्टी के बर्तन बनाने की मिट्टी कहां से निकालें, पकाने के लिए जंगल से लकड़ी का अभाव, चाक चलाने एवं तैयार बर्तन रखने व उन्हें पकाने के लिए स्थान नहीं है। मिट्टी के बर्तन बेचने वाले चुनिंदा लोग उत्तरप्रदेश की मंडियों पर निर्भर रहते हैं। इसमें भी ट्रांसपोर्ट का खर्च भारी पड़ने लगा। मिट्टी के बर्तन बरेली, नवाबगंज, बहेड़ी, पूरनपुर, कली नगर आदि स्थानों से मंगाकर बेचे जा रहे हैं।
खटीमा। मिट्टी के बर्तनों के कारोबार में टोटी वाले घड़ों की पूछ हो रही है। घड़ों का शीतल पानी पीने वाले श्रद्धालु भी टोटी वाले छोटे घड़े खरीद कर ले जा रहे हैं। सुराही का प्रचलन अब बंद हो चुका है। मिट्टी के बर्तनों में इन दिनों नाद, अलग-अलग साइज के गमले, विभिन्न साइजों के मटके, खाना बनाने वाली हाड़ी, दूध गरम करने व दही वाले कुड़े, हुक्का चिलम आदि शामिल हैं। कुल्लड़, तंदूर आदि का प्रचलन भी घट गया है।
- पुस्तैनी मिट्टी के बर्तनों के कारोबार में घर की गुजर-बसर मुश्किल बनने लगी है। पर्याप्त संसाधन होने पर मुनाफा लिया जा रहा सकता है लेकिन बने बनाए मिट्टी के बर्तन लाकर यहां बेचने में दो से चार प्रतिशत मुनाफा नहीं मिलता है। -शिव कुमार प्रजापति
मिट्टी के बर्तनों के कारोबार को अब ग्रहण सा लग चुका है। आधुनिक चकाचौंध के चलते सुराड़ी, कुल्लड़, दूध गरम करने एवं दाल पकाने वाली हांडिया लुप्त हो चुकी हैं। बाहरी मंडियों से माल मंगाकर यहां बेचना अब मुश्किल काम हो रहा है। – विनोद कुमार प्रजापति
बीकॉम करने के बाद अपने पिता के साथ पुस्तैनी कार्य में हाथ बंटाया। इस कार्य में संसाधनों का अभाव है। उत्तरप्रदेश की मंडियों से मिट्टी के बर्तन को लाकर यहां बेचने में कम मुनाफा है। 5 से 20 लीटर तक के घड़ों में टोटियां लगाने से इनकी बिक्री में कुछ इजाफा हुआ है। दीपावली में मिट्टी के दीयों की मात्र रस्म अदायगी रह गई है। सरकार की अनदेखी ने कुम्हारों की मुश्किलें बढ़ी हैं। – मनीष कुमार प्रजापति