Tuesday, November 5, 2024
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देश बंटा लेकिन भगत सिंह के परिवार के लिए मिट्टी नहीं हुई पराई

बाजपुर। लोगों में आजादी की अलख जगाने के लिए खुशी-खुशी फांसी के फंदे पर झूल गए शहीद भगत सिंह के परिवार की एक बार शहीद की जन्मस्थली के दर्शन करने की दिली तमन्ना है। उनका कहना है कि आजादी के बाद भले ही देश का बंटवारा हो गया है लेकिन उनके परिवार के लिए पाकिस्तान में स्थित उनके पैतृक गांव लायलपुर की मिट्टी आज भी पराई नहीं हुई है। उसकी सुगंध आज भी उन्हें अपनी ओर खींचती है।
1951 में शहीद भगत सिंह के भाई राजेंद्र सिंह पंजाब से आकर बाजपुर के गांव मडैया हट्टू स्थित जनता फार्म में बस गए। उन्हें करीब पचास एकड़ भूमि आवंटित हुई थी। 1974 में सीलिंग एक्ट लागू होने पर 16 एकड़ भूमि निकल गई। वर्तमान में यहां उनके पौत्रों का परिवार रह रहा है, जो खेतीबाड़ी कर अपना जीवनयापन कर रहे हैं। शहीद भगत सिंह के पौत्र विश्वजीत सिंह की पत्नी सुरेंद्र कौर वर्तमान में यहां की ग्राम प्रधान हैं। भगत सिंह के पौत्र गुरचरण सिंह उर्फ गोल्डी ने कहते हैं कि अभी भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध बेहतर नहीं है। लेकिन अगर उन्हें मौका मिला तो वह परिवार सहित लायलपुर ( वर्तमान में पाकिस्तान) जाकर उस भूमि को नमन करना चाहते हैं जहां उनके दादा का जन्म हुआ।
गर्व है कि भगत सिंह और हमारा खून एक
परिजनों का कहना है कि उन्हें गर्व महसूस होता है कि उनका और भगत सिंह का खून एक है। गांव में उनका बहुत मान सम्मान है लेकिन भगत सिंह के परिवार का हिस्सा होना उन्हें गौरवांवित करता है।
तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी ने की कई घोषणाएं
अक्तूबर 2004 में भगत सिंह की भाभी गुरदेव कौर के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करने के लिए तत्कालीन सीएम नारायण दत्त तिवारी पहुंचेे थे। उन्होंने गांव स्थित विद्यालय का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने, शहीदों का संग्रहालय, शहीद भगत सिंह की प्रतिमा स्थापित करने और फार्म को जाने वाले मार्ग का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने सहित कई घोषणाएं की थी। इसमें से सड़क का निर्माण हो गया। शहीद भगत सिंह की प्रतिमा शहर के मुख्य चौक पर स्थापित हो चुकी है।
शहीदों के नाम पर हो योजनाओं का नामकरण
पौत्र गुरचरन सिंह, परपौत्र अनमोल सिंह ने कहा कि शहीदों की स्मृतियों को एकत्र कर उनको सहेजने के लिए संग्रहालय स्थापित किया जाना चाहिए। शहीदों का सम्मान करते हुए योजनाओं का नाम भी उनके नामों से रखने पर विचार हो। शहीदों से जुड़ीं गाथाओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए, जिससे देश की भावी पीढ़ी उनके योगदान और बलिदान को जान सके।

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