होलिका दहन सत्रह मार्च को होगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शाम करीब 6.30 से रात 8.55 बजे के बीच होलिका दहन करना शुभ होगा।
आईआईटी स्थित सरस्वती मंदिर के पुजारी आचार्य राकेश शुक्ल ने बताया कि होलिका दहन के लिए तीन चीज जरूरी मानी जाती है। भद्रा न हो, पूर्णिमा तिथि और रात्रि का समय हो। पूर्णिमा तिथि सत्रह मार्च को दोपहर करीब 1.30 बजे से शुरू होगी। जो अगले दिन 12.45 बजे तक रहेगी। बताया कि फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन से पहले होलिका स्थल पर पूजन किया जाता है। इस दौरान रोली, नारियल, बताशे, अनाज की बालियां, धूप, दीप, फल आदि अर्पण करते हुए एक लोटा जल, कच्चा सूत लपेटते हुए होलिका की सात परिक्रमा करनी चाहिए। इसके अलावा गोबर के उपलों की चार माला आदि चढ़ानी चाहिए। होलिका दहन के अगले दिन होलिका की राख घर में लाने से सुख, समृद्धि आती है और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है। अठारह मार्च को रंगोत्सव होगा। आचार्य शुक्ल ने बताया कि तिथि भेद के कारण कई जगह रंगोत्सव उन्नीस मार्च को होगा। होलिका दहन को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिसमें प्रमुख रूप से भक्त प्रह्लाद और हिरणकश्यप की कथा और काम देव और रति की कथा विशेष रूप से प्रचलित है।