लोकतंत्र का उत्सव अपने चरम पर है। राजनीतिक कार्यकर्ता से लेकर निर्वाचन मशीनरी तक एक -एक मतदाता तक पहुंच बनाने के प्रयास में हैं। इसी के साथ अपने- अपने जिले के सबसे दुर्गम में बसे मतदाताओं के दर पर भी चुनाव दस्तक दे रहा है। हिन्दुस्तान टीम ने इन सबसे दूरस्थ गांवों का जायजा लिया। यहां के लोगों में मतदान का उत्साह तो है, लेकिन 75 साल के लोकतंत्र में भी पिछड़े ही रहने का मलाल भी है। इन दुर्गम के लोकतांत्रिक पड़ावों में विकास की किरण किस हद तक पहुंची है, लोकतंत्र के उत्सव को लेकर लोगों में कितना उत्साह है, कैसे चल रही हैं निर्वाचन मशीनरी की तैयारियां-
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धारचूला विधानसभा में नामिक मतदान केंद्र की सड़क से दूरी 22 किमी की है। 2400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नामिक कुमांऊ मंडल का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित केंद्र भी है। यहां ईवीएम मशीन पहुंचाने के लिए भी प्रशासन को घोड़ों का सहारा लेना होगा। कर्मचारियों को भी लगातार 12 घंटे से अधिक पैदल चलना होगा। नामिक गांव में 900 की आबादी है।
इसबार यहां 425 मतदाता पंजीकृत हैं, पिछली बार यहां 258 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। गांव में स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर एक एएनएम सेंटर है, लेकिन नियमित एएनएम की नियुक्ति न होने से बच्चों के टीकाकरण के लिए भी ग्रामीणों को 22 किमी दूर तेजम या फिर मुनस्यारी की दौड़ लगानी पड़ती है। नामिक को उरेड़ा ने बिजली से जोड़ तो दिया है, लेकिन तकनीकी खराबी के कारण बिजली आपूर्ति ज्यादातर बाधित रहती है। छात्र-छात्राओं को इंटर की पढ़ाई के लिए 26 किमी की दौड़ बिर्थी तक लगानी पड़ती है।