Thursday, April 10, 2025
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मानव-वन्यजीव संघर्ष कम करने के लिए बढ़ेगी सामुदायिक भागीदारी, पांच गांव किए चिन्हित

मानव-वन्यजीव संघर्ष कम करने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ ही सामुदायिक भागीदारी, ग्राम पंचायतों की भूमिका और स्थानीय लोगों का सहयोग लिया जाएगा। इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पांच गांवों का चयन कर इनमें प्रभावी समाधानों के कार्य शुरू किए जाएंगे। इस संबंध में अपर मुख्य सचिव आनंदवर्द्धन ने जलागम विभाग को निर्देश दिए हैं। अपर मुख्य सचिव जलागम प्रबंधन एवं कृषि उत्पादन आयुक्त आनंदवर्धन ने सोमवार को सचिवालय में जलागम, भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों एवं कंसलटेंट्स के साथ बैठक की। एसीएस ने लोगों को जंगली जानवरों के हमलों से सतर्क करने के लिए अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने और माइक्रो प्लान पर काम करने के भी निर्देश दिए हैं।
इसके साथ ही पायलट प्रोजेक्ट के तहत राजाजी-कार्बेट लैंडस्कैप के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में मानव-वन्यजीव संघर्ष के पैटर्न का अध्ययन करने और क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रति स्थानीय लोगों के रुझान, धारणाओं और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का डॉक्यूमेंटेशन करने के भी निर्देश दिए हैं। बैठक में परियोजना निदेशक जलागम नवीन सिंह बरफाल, उपनिदेशक डॉ. एसके सिंह, डॉ. डीएस रावत, डॉ. जेसी पांडेय, भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिक डॉ. के रमेश, डॉ. मनोज कुमार अग्रवाल, श्रुति, तोमाली मंडल, विकास वत्स आदि उपस्थित थे।
मानव वन्यजीव संघर्ष के ये कारण आए सामने
बैठक में मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं के पीछे गांवों से पलायन के कारण कम आबादी घनत्व, एलपीजी सिलेंडरों की त्वरित आपूर्ति सेवा का अभाव, सड़कों पर लगी लाइटों की खराब स्थिति, पालतू पशुओं की लंबी अवधि तक चरान, चुगान, गांवों की खाली एवं बंजर जमीनों पर लेंटाना, बिच्छू घास, काला घास, गाजर घास के उगने से जंगली जानवरों को छुपने की जगह मिलना जैसे कारण सामने आए।
यहां चल रहा पहले से प्रोजेक्ट
मानव-वन्य जीवन संघर्ष को नियंत्रित करने के लिए एक प्रोजेक्ट पौड़ी गढ़वाल के कुछ क्षेत्रों चलाया जा रहा है। प्रोजेक्ट के तहत सर्वाधिक मानव-वन्यजीव संघर्षो वाले गांवों जिनमें 17 से अधिक मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं हुई हैं, की पहचान की गई है।
60 से 80 प्रतिशत फसल नष्ट कर देते हैं वन्यजीव
भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने जानकारी दी कि फसलों को नुकसान पहुंचाने के लिए जंगली सूअर और भालू सबसे अधिक उत्तरदायी हैं। मानव-वन्यजीव संघर्ष से प्रभावित जिन गांवों में सर्वे किया गया वहां गेंहू का उत्पादन बंद कर दिया है। ग्रामीणों ने मंडुआ, हल्दी और मिर्च का उत्पादन शुरू कर दिया। 50 प्रतिशत गांवों में सभी मौसमों में 60-80 प्रतिशत फसलें वन्यजीव नष्ट कर देते हैं। 100 प्रतिशत ग्रामीणों ने माना कि यदि वन्यजीवों की ओर से फसलें नष्ट नहीं की जाती तो कृषि कार्य उनके लिए लाभकारी होता। प्रभावित गांवों के कुल कृषि क्षेत्र का 50 प्रतिशत क्षेत्र खाली पड़ा है।

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