Thursday, October 31, 2024
Homeउत्तराखण्डउत्तर भारतीय भी ले सकेंगे सरबती आटे की रोटियों का स्वाद, पंत...

उत्तर भारतीय भी ले सकेंगे सरबती आटे की रोटियों का स्वाद, पंत विवि के वैज्ञानिकों को मिली सफलता, जानिए खासियत

उत्तर भारतीय भी जल्द मध्य प्रदेश में उगाए जाने वाले गेहूं की सरबती प्रजाति के आटे की रोटियों का स्वाद ले सकेंगे। जीबी पंत कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने मध्य प्रदेश से गेहूं की सी-306 (सरबती) प्रजाति का बीज मंगवाकर सीआरसी में सफल उत्पादन कर सूक्ष्म परीक्षण किया है। निदेशक शोध डॉ. एएस नैन ने बताया कि सीआरसी में सरबती गेहूं की उपज पर किए गए परीक्षणों में औसत उत्पादन करीब नौ क्विंटल प्रति एकड़ पाया गया। मध्य प्रदेश में इसकी औसत उपज 12 क्विंटल प्रति एकड़ है। सरबती एक उच्च गुणवत्ता का गेहूं है जिसमें प्रोटीन की मात्रा सामान्य गेहूं से डेढ़ प्रतिशत और पोटेशियम व मैग्नीशियम की मात्रा सामान्य गेहूं से तीन से पांच प्रतिशत अधिक होती है। इसमें शर्करा (ग्लूकोज व सुक्रोज) की मात्रा भी सामान्य गेहूं से अधिक है जिसके चलते इसका आटा कुछ मीठा होता है। वर्तमान में ऑनलाइन प्लेटफार्म पर सरबती आटे के 10 किलो के बैग की कीमत 900 रुपये से 1000 रुपये तक है। पादप रोग वैज्ञानिक डॉ. दीपशिखा ने बताया कि सीआरसी में इस प्रजाति में किसी प्रकार के रोग का प्रकोप नहीं पाया गया। चूंकि उत्तर भारत में लीफ रस्ट गेहूं की प्रमुख बीमारी है, इस प्रजाति पर विभिन्न रोगों की प्रतिरोधक क्षमता जांचने के लिए परीक्षण किए जाएंगे।
सरबती गेहूं की खासियत
सरबती गेहूं की पैदावार केवल मध्य प्रदेश के सीहोर और विदिशा जिले में ही होती है। इसके दाने थोड़े बड़े और सुनहरी चमक लिए होते हैं। अकेले सीहोर में ही सरबती गेहूं की खेती करीब 40000 हेक्टेयर में की जाती है। सीआरसी में किए गए परीक्षणों में सरबती के पौधों की औसत लंबाई 132 सेमी., बालियों की औसत लंबाई 10.5 सेमी., प्रतिबाली दानों की संख्या 44-46 और 1000 दानों का भार लगभग 44 ग्राम पाया गया। इस वर्ष गेहूं की सी-306 सरबती प्रजाति का बीज बुवाई के सामान्य समय से लगभग एक महीने देरी से बोया गया था। इसके अलावा मार्च में ही तापमान में एकाएक वृद्धि के चलते भी उपज में थोड़ी कमी दर्ज की गई। जैसे-जैसे उत्तर भारत में सरबती गेहूं की खेती होगी, यहां के वातावरण में इसकी अनुकूलनशीलता बढ़ने के साथ उपज में भी वृद्धि होने की संभावना है। इससे यहां भी 12 से 15 क्विंटल प्रति एकड़ उपज प्राप्त की जा सकेगी। – डॉ. एसके वर्मा, कृषि वैज्ञानिक एवं संयुक्त निदेशक-सीआरसी।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments