मौसम की मार से अब धान की खड़ी फसल खेत में नहीं बिछेगी। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने धान की छह प्रजातियों के म्यूटेंट में बदलाव कर पौधों की ऊंचाई कम कर दी है। ऐसे में बरसात, ओलावृष्टि और आंधी का फसलों पर खास असर नहीं पड़ेगा। इससे किसानों का नुकसान कम होगा। वैज्ञानिकों ने मूंग की आठ प्रजातियों के म्यूटेंट में भी बदलाव कर नई प्रजातियां बनाई हैं।
देहरादून के उत्तरांचल विवि में आयोजित आकाश तत्व सम्मेलन में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों की ओर से धान की नई प्रजातियों की प्रदर्शनी लगाई है। सेंटर के पब्लिक अवेयरनेस डिवीजन के अध्यक्ष डॉक्टर आरके वत्स ने बताया कि पहले चरण में संस्थान के वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली धान की छह प्रजातियों के म्यूटेंट में बदलाव कर पौधों की ऊंचाई कम की है। छत्तीसगढ़ सरकार के अनुरोध पर जिन प्रजातियों का म्यूटेंट बदलकर नई प्रजातियां विकसित की गई हैं उनमें सीजी जवाफूल, टीकेआर कोलम, ट्रॉम्बे छत्तीसगढ़ सोनागाक्षी म्यूटेंट (टीसीबीएम), ट्रांबे छत्तीसगढ़ दूबराज म्यूटेंट (टीसीडीएम) विक्रम टीसीआर, ट्रांबे छत्तीसगढ़ विष्णुभोग म्यूटेंट (टीसीवीएम) शामिल हैं।
गामा रेडिएशन के जरिये बदला म्यूटेंट
सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. आरके वत्स के मुताबिक, गामा रेडिएशन के जरिये धान की प्रजातियों के म्यूटेंट में बदलाव किया गया है। इसके बाद नई प्रजाति के धान को विकसित किया गया, जो पहले वाले की तुलना में अलग है।
देश में पाई जाती हैं धान की करीब 40 हजार प्रजातियां
जानकारी के मुताबिक, देश में धान की करीब 40 हजार प्रजातियां हैं। इसमें सबसे अधिक 23230 प्रजातियां धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में पाई जाती हैं।
अब खेत में नहीं बिछेगी धान की खड़ी फसल, वैज्ञानिकों ने छह प्रजातियों के म्यूटेंट में किया बदलाव
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