उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हो रही बर्फबारी वन विभाग के लिए चुनौती बन रही है। बर्फबारी के कारण फूलों की घाटी जाने वाले रास्ते में भारी मात्रा में बर्फ और कई हिमखंड मौजूद हैं। इस कारण फूलों की घाटी तक गश्त के लिए निकली टीम को घांघरिया से ही वापस लौटना पड़ा। टीम का कहना है कि बर्फ और हिमखंडों के बीच से फूलों की घाटी तक जाने के लिए अभी पर्याप्त रास्ता नहीं है। हिमखंडों के बीच से जाना खतरे से खाली नहीं है।
खतरे से खाली नहीं है हिमखंडों के बीच से जाना
नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के अंतर्गत 87.5 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली फूलों की घाटी जैव विविधता का खजाना है। यह दुनिया का एकमात्र स्थान है, जहां 500 से अधिक प्रजाति के फूलों के साथ दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीव, पक्षी और जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। हर साल वन विभाग की टीमें शीतकाल में वन्य जीवों की निगरानी के लिए घाटी तक निरंतर गश्त करती हैं। इसके लिए घाटी में आठ ट्रैप कैमरे भी लगाए गए हैं।
टीम फूलों की घाटी तक नहीं पहुंच पाई
पिछले दिनों भी नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क से वन कर्मियों की टीम फूलों की घाटी में वन्यजीवों की गतिविधियों और तस्करों पर नजर रखने के सिलसिले में गश्त पर निकली थी। लेकिन, रास्ते में हिमखंड और बर्फ की मोटी परत होने के कारण टीम फूलों की घाटी तक नहीं पहुंच पाई। टीम को घाटी से तीन किमी पहले घांघरिया से ही लौटना पड़ा। अब टीम कुछ दिन बाद फिर से गश्त पर जाने की तैयारी कर रही है। फूलों की घाटी को यूनेस्को ने वर्ष 2006 में विश्व धरोहर किया था। हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक फूलों की घाटी पहुंचते हैं। पिछले साल 21 हजार से अधिक पर्यटकों ने घाटी का दीदार किया था। फूलों की घाटी एक जून को खुलती और 31 अक्टूबर को बंद होती है।
उच्च हिमालय में बर्फबारी बनी चुनौती, फूलों की घाटी के रास्ते में कई हिमखंड, गश्त पर गई टीम लौटी
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