दुर्लभ वन्यजीवों का संसार समेटे हुए हिमालय पर जलवायु का खतरा मंडरा रहा है। बदलती आबोहवा में जीव-जंतुओं के वास स्थल सिमट रहे हैं। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में केरल के बाद उत्तराखंड की जैव विविधता पर सबसे ज्यादा खतरा है। हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले कई वन्यजीव और वनस्पतियां विलुप्ति के कगार पर हैं।
उत्तराखंड में हैं
- 06 राष्ट्रीय उद्यान
- 07 वन्य जीव विहार
- 04 संरक्षण आरक्षित
- 01 उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान
- 01 जैव सुरक्षित क्षेत्र
जानिए ये खास बातें - 1935 में राज्य के प्रथम वन्य जीव संरक्षण केंद्र के रूप में मोतीचूर वन्य जीव विहार की स्थापना।
- 1983 में मोतीचूर वन्य जीव विहार राजा जी राष्ट्रीय उद्यान में समाहित हुआ।
- 5066 गिद्ध थे 2005 में, अब संख्या का पता नहीं।
- 422 बाघ हैं फिलहाल उत्तराखंड में, इनमें से 70 प्रतिशत जिम कॉर्बेट और राजाजी पार्क में।
- 40 हिम तेंदुए रिकॉर्ड हुए गंगोत्री नेशनल पार्क के ट्रैप कैमरों में, गणना अभी जारी है।
- 3500 से 5500 मीटर तक की ऊंचाई में विचरण करते हैं हिम तेंदुए।
- 2026 हाथी थे 2021 में।
गायब हो गए लकड़ग्घा की खोज के लिए अनुसंधान जारी
पर्यावरण और परिस्थितिकी तंत्र की एक अहम कड़ी धारीदार लकड़बग्घा समय के साथ विलुप्त हो रहा है। उत्तराखंड में इनकी उपस्थिति नाममात्र की रह गई है। वन विभाग की अनुसंधान शाखा इन दिनों से पर शोध कर रही है।
कस्तूरी मृग
हिमालयन मस्क डियर यानी कस्तूरी मृग उत्तराखंड का राज्य वन्य पशु है। इसका वैज्ञानिक नाम मास्कस क्राइसोगौ है।
उड़न गिलहरी
उड़न गिलहरी (वूली) सिर्फ रात में दिखती है। यह वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के शेड्यूल-2 में दर्ज है। अपने पंजों के बीच फर को पैराशूट की तरह इस्तेमाल कर यह गिलहरी 450 मीटर तक ग्लाइड कर सकती है। उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क, पौड़ी, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और देहरादून के चकराता क्षेत्र में भी इसकी मौजूदगी दर्ज की गई।
विलुप्त हुईं प्रजातियां
28 प्रजातियां पक्षियों की उत्तराखंड में विलुप्त हो चुकी हैं। अब उत्तराखंड में 693 प्रजातियां हैं। इनमें रेन क्वैल, किंग क्वैल, लेसर लोरीकन, इंडियन कोर्सर, लिटिल गल, लिटिल टर्न, तिबतन सैंडक्रूज, यूरोपियन टर्टल डव, बार्ड कुकू डव, थिक बिल्ड, ग्रीन पिजन, इंडियन स्विफ्टलेट, सिल्वर ब्रेस्टेड ब्राइबिल, ग्रे चिन्नड़ मिनिवेट, यूरोपियन स्काइलार्क, स्लेटी विलाइड टेसिया, रेडीज बार्बलर, यलो ब्राउडर बार्बलर, थिक बिल्ड बार्बलर प्रजातियां शामिल हैं। बेयर्स पोचर्ड, तीन किस्म के गिद्ध स्लेंडर बिल्ड वल्चर, व्हाइट वल्चर और रेड हेडेड वल्चर के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। उच्च हिमालय की जैव विविधता अन्य क्षेत्रों से बिल्कुल अलग है। हिमालय को दुनिया का तीसरा ध्रुव भी कहा जाता है। यहां निवास करने वाले वन्य जीवों की कई प्रजातियां संकट में हैं। जलवायु परिवर्तन के कार कई प्रजातियों के प्राकृतिक वास स्थल सीमित हो रहे हैं। इनस वास स्थलों से छेड़छाड़ भी एक प्रमुख वजह है। – डॉ. समीर सिन्हा, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन, वन विभाग