सोमेश्वर (अल्मोड़ा)। सांस्कृतिक नगरी में जीवनदायिनी कोसी के अस्तित्व को बचाने के दावे हवाई साबित हो रहे हैं। इसके अस्तित्व को बचाने के लिए बेहद जरूरी इसके उद्गम स्थल और इसमें जलापूर्ति करने वाले गधेरों को संरक्षित करने के लिए सरकार की तिजोरी में धन नहीं है। वन विभाग ने इन स्थानों पर पौधरोपण और इनके संरक्षण के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा जो दो सालों से सरकारी फाइलों में धूल फांक रहा है। अल्मोड़ा में जीवनदायिनी कोसी नदी को संरक्षित व पुनर्जीवित करने के लिए बीते एक दशक से अभियान चल रहा है। अभियान के तहत इसके उद्गम स्थल और इसमें जलापूर्ति करने वाले गाड़-गधेरों को संरक्षित किया जाना है ताकि इसमें पर्याप्त जलापूर्ति हो और यह अपने मूल स्वरूप में प्रवाहित हो सके। सरकारी स्तर पर इसकी जिम्मेदारी वन विभाग को सौंपी गई है लेकिन बजट की कमी के चलते विभाग के लिए इस काम को अंजाम तक पहुंचाना चुनौती बन गया है। वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार बीते दो वर्षों से कोसी नदी के संरक्षण को लेकर कोई बजट शासन से नहीं मिल सका है। जबकि विभाग पांच करोड़ से अधिक का प्रस्ताव शासन को भेज चुका है, जो सरकारी फाइलों में धूल फांक रहा है। ऐसे में कोसी केवल कागजों में बचाई जा रही है।
जन सहभागिता पर जोर दे रहा है वन विभाग
सोमेश्वर। कोसी को संरक्षित करने के लिए वन विभाग बजट का रोना रोते हुए जनसभागिता पर जोर दे रहा है। डीएफओ महातिम यादव ने कहा कोसी को पुनर्जीवित करने के लिए इसकी जलापूर्ति करने वाले गधेरों को संरक्षित करना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले जंगलों को संरक्षित करना होगा, जिसके लिए जन सहभागिता जरूरी है। विभाग की टीम ने इस दौरान क्षेत्र के आनंद वैली, कंट्रीवाइड पब्लिक स्कूल में पहुंचकर स्थानीय लोगों के साथ बैठक की और कोसी को बचाने के लिए सहयोग की अपील की। गजेंद्र पाठक ने कहा जंगलों को बचाकर जल स्रोतों व गैर हिमानी नदियों को बचाना होगा, नहीं तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इस मौके पर रेंजर मनोज लोहनी, आनंद वैली स्कूल के प्रधानाचार्य विजय चौहान, हीरा सिंह विष्ट, किशोर चंद, जगदीश रौतेला, राम सिंह बोरा सहित कई लोग शामिल रहे। कोट- कोसी नदी के उद्गम स्थल और इसको जलापूर्ति करने वाले गधेरों को संरक्षित करने के लिए पांच करोड़ के बजट का प्रस्ताव शासन में भेजा गया है। बीते दो साल से इसके लिए विभाग को बजट नहीं मिल सका है। – महातिम यादव, डीएफओ, अल्मोड़ा।
कोसी नदी के अस्तित्व को बचाने को सरकार की तिजोरी में नहीं है धन
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