ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रही दुनिया को आज पृथ्वी दिवस मनाने से ज्यादा पृथ्वी को बचाने के उपाय खोजने की जरूरत है। केवल पौधे लगा देने भर से ही पृथ्वी को सुरक्षित नहीं किया जा सकता, बल्कि इन पौधों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में भी काम करना होगा। महानगर हल्द्वानी में भी हर साल संस्थाओं, सरकारी विभागों द्वारा सैकड़ों पौधे रोपे जाते हैं, मगर शायद ही बाद में पलट कर इनकी सुध ली गई हो। इसका एक उदाहरण गौलापार में वो 8 एकड़ भूमि भी है, जहां अंतरराज्यीय बस अड्डा (आईएसबीटी) बनाने के लिए ढाई हजार से अधिक पेड़ों पर आरी चला दी गई।
अपने कुछ कार्यों की पूर्ति के लिए किस कदर मानव पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, आईएसबीटी इसका सबसे बेहतर उदाहरण है। शहर के बीचोबीच स्थित रोडवेज अड्डे की बसों से जाम लगने की बातें बार-बार उठने पर 2009 में गौलापार में अंतराज्जीय बस अड्डा बनाने का निर्णय लिया गया। वन विभाग ने 2015 में 8 एकड़ भूमि परिवहन विभाग को हस्तांतरित कर दी। इस भूमि पर 2625 हरे पेड़ थे। 2016 में इन पेड़ों को काटकर ठिकाने लगा दिया गया। विभिन्न प्रजातियों के ये पेड़ 5 साल से 40 साल उम्र के थे। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन पेड़ों को लगाने वालों ने कितनी शिद्दत से इनकी देखभाल की होगी। पेड़ों को काटे हुए करीब 6 साल से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन न तो आईएसबीटी बन सका और न ही यहां कोई दूसरे पेड़ लगाने के प्रयत्न किए गए। पीछे मुड़कर देखें तो यदि पेड़ न काटे गए होते तो कितनी मात्रा में ऑक्सीजन देते। वर्षा को आकर्षित करते, छांव देते, वन्यजीवों को भोजन और आसरा देते। प्रकृति के दोहन का यह सिलसिला अभी रुका नहीं है। तीनपानी में दोबारा से आईएसबीटी के लिए वन भूमि का चयन किया गया है। जाहिर है कि वहां भी सैकड़ों पेड़ कटेंगे।
ढाई हजार पेड़ काट दिए फिर भी मकसद पूरा न हुआ
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