अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में सक्रिय रेफरल रैकेट मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाकर तीमारदारों को लूट रहा है। कुछ एंबुलेंस संचालक और चालक अस्पताल की इमरजेंसी से रेफर और उपचार के लिए आए मरीजों को फंसाकर देहरादून के निजी अस्पताल में भर्ती करवा रहे हैं। इसके लिए एंबुलेंस संचालकों और चालकों को प्रत्येक मरीज के लिए 10 से 15 हजार रुपये का कमीशन मिलता है।एम्स ऋषिकेश के प्रशासनिक तंत्र की विफलता के चलते अस्पताल मरीजों और तीमारदारों से कमीशनखोरी और लूट खसोट का अड्डा बन गया। ताजा मामले में एम्स रेफरल रैकेट के सक्रिय होने का मामला सामने आया है। रेफरल रैकेट में देहरादून के कई निजी अस्पताल, एंबुलेंस संचालक और चालक शामिल हैं। एम्स ऋषिकेश में बेड उपलब्ध न होने के चलते इमरजेंसी में आने वाले मरीजों को रेफर किया जाता है। हालांकि 24 घंटे तक बेड के खाली होने का इंतजार किया जाता है। मरीज के रेफर होने के बाद तीमारदार को इमरजेंसी बेड खाली करने के लिए बोल दिया जाता है। ऐसे में मरीज के तीमारदार के सामने संकट पैदा हो जाता है। वहीं एम्स में उपचार के लिए आए मरीजों को लंबे इंतजार के बाद भी बेड नहीं मिल पाता है। मरीज और तीमारदार एम्स परिसर में पूरा दिन बैठे रहते थे।
अस्पताल परिसर में सक्रिय रेफरल रैकेट से जुड़े लोग परेशान तीमारदारों के हाव भाव को पहचान लेते हैं। ये लोग तीमारदारों को एंबुलेंस संचालकों या चालकों से संपर्क करने के लिए कहते हैं। कई बार तीमारदार सीधा भी एंबुलेंस संचालक या चालक के पास पहुंच जाता है। यहां लूटखसोट का खेल शुरू होता है। एंबुलेंस संचालक और चालक मरीज के तीमारदार को छूट का झांसा देकर देहरादून के निजी अस्पताल में भर्ती करने की बात कहकर फंसा लेते हैं। इसके बाद एंबुलेंस चालक मरीज को निजी अस्पताल ले जाता है। मरीज के भर्ती होने के साथ एंबुलेंस चालक या संचालक को 10 से 14 हजार रुपये कमीशन का भुगतान कर दिया जाता है। वहीं उपचार के बाद मरीज के तीमारदार को भारी भरकम बिल पकड़ा दिया जाता है। रोजाना दर्जनों मरीजों के तीमारदार रेफरल रैकेट का शिकार बनते हैं। कई बार एंबुलेंस संचालक और चालकों में मरीजों को निजी अस्पताल भर्ती कराने को लेकर विवाद, गाली गलौज और मारपीट होती है, लेकिन इस घटनाओं को आपसी विवाद का नाम देकर अंदरखाने ही निपटा दिया जाता है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष से मारपीट के बाद हुआ खुलासा
जय गुरुजी प्राइवेट एंबुलेंस ओनर एसोसिएशन की अध्यक्ष दीपिका अग्रवाल ने कोतवाली में उनके साथ मारपीट के मामले में तहरीर दी थी। शिकायतकर्ता ने बताया था कि देहरादून के निजी अस्पताल के प्रबंधन से जुड़े एक अधिकारी, कुछ एंबुलेंस संचालक और चालक समेत 25 से 30 लोगों उनके साथ मारपीट और अश्लील हरकत की थी। महिला ने बताया था कि निजी अस्पताल के अधिकारी ने उनके पेट में लात मारी थी। इसके बाद महिला ने चौंकाने वाला खुलासा किया था। दीपिका अग्रवाल ने बताया कि एम्स में इमरजेंसी से रेफर होने वाले और उपचार के लिए आए मरीजों को कमीशन लेकर भर्ती कराया जाता है। उन्होंने बताया कि निजी अस्पतालों के कर्मचारी भी एम्स परिसर में घूमते रहते हैं। वहीं कुछ एंबुलेंस संचालक और चालक भी इस रेफरल रैकेट से जुड़े है। प्रत्येक मरीज को निजी अस्पताल में पहुंचाने के लिए इन संचालकों और चालकों 10 से 15 हजार कमीशन मिलता है। दीपिका ने कहा घटना के दिन भी एक आग से झुलसे बच्चे को एक निजी अस्पताल में भेजा जा रहा था। जब उन्होंने विरोध किया तो उनके साथ मारपीट शुरू कर दी गई।मामला संज्ञान में नहीं था। मामले की जांच की जाएगी। सीसीटीवी की फुटेज की जांच के साथ परिसर में होने वाली गतिविधियों पर भी नजर रखी जाएगी। यह एक तरह का अपराध है। पुलिस को भी ऐसे मामलों का संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए। -हरीश मोहन थपलियाल, पीआरओ, एम्स ऋषिकेश
उत्तराखंड : रेफरल रैकेट के कब्जे में एम्स ऋषिकेश, बदले में हर मरीज से मिल रहे हैं 10 से 15 हजार रुपये
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