मां और उसके दो मासूम बच्चे हर रोज रास्ते पर टकटकी लगाए बैठे रहते हैं। हर दिन इसी उम्मीद के साथ सुबह होती है कि शायद आज ही पापा आ जाएं या उनकी कोई सूचना मिल जाए। लेकिन सूरज के ढलते ही घर में एक मायूसी सी छा जाती है और मां अपने आंसुओं को छिपाते हुए बच्चों को यही दिलासा देती है कि पापा जल्द ही घर आ जाएंगे। यह दास्तां है अरुणाचल प्रदेश में चीन की सीमा पर सातवीं गढ़वाल राइफल्स में तैनात देहरादून के प्रकाश सिंह राणा के घर की। मूल रूप से रुद्रप्रयाग के चिलौनी गांव के रहने वाले और वर्तमान में अंबीवाला सैनिक कॉलोनी देहरादून में निवासरत प्रकाश सिंह राणा की पोस्टिंग अरुणाचल प्रदेश के चीन सीमा पर ठाकला पोस्ट पर हुई थी। मई माह में वह सीमा में पेट्रोलिंग के दौरान लापता हो गए थे। 29 मई को उनकी बटालियन के सूबेदार मेजर ने पत्नी ममता राणा को लापता होने की सूचना दी थी। बताया गया कि पेट्रोलिंग के दौरान पैर फिसलने से वह चीन सीमा की तरफ गिर गए थे। सेना की ओर से कई दिनों तक लापता जवान की खोजबीन की गई, लेकिन कोई पता नहीं चला।
बच्चों के सवालों का नहीं किसी के पास जवाब
प्रकाश सिंह राणा के एक दस साल का बेटा अनुज और एक सात की बेटी अनामिका है। दोनों बच्चे अक्सर पूछते रहते हैं कि पापा कब आएंगे, लेकिन किसी के पास इसका जवाब नहीं है। पत्नी ममता राणा भी हर दिन इसी आस में रहती हैं कि काश आज ही उनके पति का कुछ पता चल जाए। वह पति की सलामती के लिए हर रोज प्रार्थना करती हैं। ममता राणा ने बताया कि पलटन वालों से बात होती है, लेकिन वह कहते हैं कि अभी तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई है।
सेना ने बंद कर दिया है वेतन
ममता राणा ने बताया कि अभी तक सेना की ओर से परिवार को उनके पति का पूरा वेतन दिया जा रहा था। लेकिन, अब सेना ने वेतन देना बंद कर दिया है। बताया कि अब सेना के अफसर पेंशन के कागजात तैयार करने की बात कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि वेतन बंद होने से उनके सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया है।
जनप्रतिनिधि भी भूले परिवार को
जवान के लापता होने की सूचना पर तमाम जनप्रतिनिधि उनके घर पहुंचे थे। मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक ने वादा किया था कि वह लापता जवान को ढूंढने के लिए सेना के अधिकारियों के साथ बात करेंगे। लेकिन अब सभी जवान और उसके परिवार को भूल चुके हैं।
सुबह उम्मीद और शाम खत्म होती है मायूसी के साथ, प्रकाश सिंह राणा की कहानी रुला देगी
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