जलवायु परिवर्तन के कारण बुग्यालों की तरफ बढ़ती ट्री लाइन, ग्लेशियर क्षेत्र में अत्यधिक बारिश और बढ़ती पर्यटन गतिविधियों के कारण बुग्यालों की सेहत खराब हो रही है। हिमालयी क्षेत्र में स्थित बुग्यालों में मृदा कार्बन कम होने के साथ ही जड़ी-बूटियों को विदोहन भी बढ़ा है। सड़क निर्माण के मामलों ने भी इन्हें प्रभावित किया है। समय रहते इनके संरक्षण की दिशा में काम नहीं किया गया तो आने वाले समय में बुग्याल कल की बात हो जाएंगे
प्रदेश के छह जिलों में हैं 80 से 82 बड़े बुग्याल
8500 से 9000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले हैं
3500 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं बुग्याल
विश्वविख्यात हैं ये बुग्याल
टिहरी: खतलिंग बुग्याल, पंवाली कांठा बुग्याल, मासर ताल और जौराई बुग्याल
रुद्रप्रयाग: चोपता, वर्मी, कासनी और मद्महेश्रवर बुग्याल
उत्तरकाशी: दयारा, हरकी दून, केदार खर्क, चाईंसिल, ताल, तपोवन, तलहटी, कुश कल्याण बुग्याल
चमोली: बेदनी बुग्याल, औली, फूलों की घाटी, रुद्रनाथ बुग्याल, नंद कानन, पन्नार और संतोपथ बुग्याल
पिथौरागढ़: छिपला केदार, खलिया, थाला, जोहार, राहाली, नामिक और थाल
बागेश्वर: पिंडारी, सुंदर डूंगा और कफनी बुग्याल
यह भी संकट की वजह
- शिकार के लिए बुग्याल क्षेत्र में लगाई जाती है आग
- कुछ स्थानों पर सड़क निर्माण के कार्य से प्रभावित हुए बुग्याल
- भेड़ बकरियों के साथ बड़े खुर वाले पशुओं की चहलकदमी
जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि बुग्यालों की सेहत बिगाड़ रही है। इसके अलावा बर्फबारी कम हो रही है और बारिश का दौर बढ़ा है। इससे बुग्याल क्षेत्रों में भूक्षरण के मामलों में वृद्धि हुई है। ट्री लाइन और खरपतवार बुग्यालों की तरफ बढ़ रहे हैं। कई बार वन्यजीवों के शिकार के लिए बुगयाल क्षेत्र में आग लगा दी जाती है। बुग्यालों की संरक्षण की दिशा में वन विभाग के स्तर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। – मनोज चंद्रन, मुख्य वन संरक्षक, उत्तराखंड वन विभाग
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र उत्तराखंड में स्थित बुग्यालों पर इसरो की मदद से लगातार अध्ययन कर रहा है। बुग्यालों की सेहत कई कारणों से बिगड़ रही है। क्लाइमेट चेंज, कम बर्फबारी और अधिक बारिश, लोगों की ओर से बड़े जानवरों को बुग्याल क्षेत्र में छोड़ा जाना, पर्यटन के चलते मानवीय हस्तक्षेप बढ़ना इत्यादि ऐसे कारण हैं, जो बुग्यालों की सेहत पर असर डाल रहे हैं। – डॉ. गजेंद्र सिंह, वैज्ञानिक उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक)