मानसून के दौरान उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भारी हिमपात हुआ। अब तेज धूप निकलने से चोटियों पर बड़ी मात्रा में जमा बर्फ कमजोर होकर नीचे खिसक रही है। साथ ही बारिश भी रुक-रुक कर हो रही है। बारिश की वजह से ताजा बर्फ ढाल वाली चोटियों से खिसकने लगती है। या फिर ग्लेशियर से बर्फ की परत या टुकड़े टूटकर नीचे आ सकते हैं। उत्तराखंड में बीते कुछ दिनों में हिमस्खलन की चार घटनाएं इसी का नतीजा है। यह कहना है कि वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता का, जो केदारनाथ क्षेत्र में हिमस्खलन का अध्ययन करने गई वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेेसिंग (आईआईआरएस) के वैज्ञानिकों की पांच सदस्यीय टीम में शामिल थे। टीम केदारनाथ के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित कंपेनियन ग्लेशियर पर दो दिन तक अध्ययन करने के बाद लौट आई है। इसमें वाडिया के वरिष्ठ ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. मनीष मेहता, डॉ. विनीत कुमार, आईआईआरएस के डॉ. सीएम भट्ट, डॉ. प्रतिमा पांडेय और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक डॉ. पीयूष रौतेला शामिल थे। टीम जल्द अपनी रिपोर्ट केंद्र और राज्य सरकार सौंपेगी। डॉ. मेहता के मुताबिक हिमालय बनने के साथ ही हिमस्खलन की घटनाएं लाखों साल से हो रही हैं। भविष्य में इनकी आशंका बनी रहेगी।
30 से 300 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से खिसकती है बर्फ
डॉ. मेहता के मुताबिक वैज्ञानिक शोध में यह बात सामने आई है कि हिमस्खलन की रफ्तार 30 किमी से लेकर 300 किमी प्रति घंटे होती है। हिमस्खलन की रफ्तार चेटियों पर जमा बर्फ और ढलान पर निर्भर करता है। चोटियों की बर्फ को पकड़ने की एक क्षमता होती है। जैसे ही बर्फ अधिक जमा हो जाती है तो गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से तेजी से नीचे खिसकती है। इसे हिमस्खलन कहा जाता है।
तेज धूप और बारिश से कमजोर पड़ रही बर्फ की पकड़, वैज्ञानिकों ने कहा सतर्क रहने की जरूरत
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