देहरादून। कच्चे तेल में काफी मात्रा में सल्फर होता है, जो पर्यावरण के साथ ही मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है। लिहाजा, सीएसआईआर-आईआईपी डिसल्फराइजेशन की प्रक्रिया के तहत अपनी सस्ती और कारगर तकनीक के इस्तेमाल के लिए देशभर की रिफाइनरियों से करार करेगा। आईआईपी के निदेशक डॉ. अंजन रे ने ‘हिन्दुस्तान से यह जानकारी साझा की। उनके मुताबिक, कच्चे तेल में सल्फर युक्त ऐसे यौगिक होते हैं, जो ईंधन की गुणवत्ता घटाने के साथ-साथ मानव में कैंसर जैसे रोगों का कारण भी हैं। इसलिए पेट्रोल-डीजल, जेट ईंधन, केरोसीन और फ्यूल ऑयल को इस्तेमाल में लाने से पहले उन्हें सल्फर मुक्त या उसकी मात्रा घटानी जरूरी होती है। परंपरागत रूप से डिसल्फराइजेशन की मौजूदा प्रक्रिया महंगी है। लेकिन, दून स्थित आईआईपी के वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक सिंगल स्टेज हाइड्रोजन मुक्त डिसल्फराइजेशन प्रक्रिया विकसित की है, जिससे कच्चे तेल में सल्फर को 90% तक कम करने में सफलता मिल चुकी है। उन्होंने इसका पेटेंट भी हासिल कर लिया है। यह बी-6 क्वालिटी का ईंधन बनाने की तकनीक है। इससे मिलने वाले सल्फर यौगिकों को सड़क निर्माण और कोटिंग्स में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। डॉ. अंजन ने बताया कि सस्ती और कारगर तकनीक होने के कारण इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। हम यही चाहते भी हैं।
सीएसआईआर की 37 लैब में से एक है आईआईपी
आईआईपी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. गणनाथ ठाकरे के अनुसार, वर्ष 1960 में स्थापित सीएसआईआर-आईआईपी, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की 37 घटक प्रयोगशालाओं में से एक है, जो जीवाश्म ईंधन के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने के साथ ही वैश्विक तेल एवं गैस क्षेत्र के पर्यावरण प्रभाव को कम करके दक्षता बढ़ाने एवं कम कार्बन उत्सर्जन की दिशा में काम कर रही है।
कच्चे तेल से सल्फर को 90 फीसदी घटाने की तकनीक देगा आईआईपी
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