पर्यटन राज्य के सपने को पूरी तरह से साकार नहीं कर पाए हैं। बेशक पर्यटन को राज्य की अर्थव्यवस्था रीढ माना जाता है। लेकिन कुदरत ने राज्य को जो नेमत बख्शी , सत्ता में बैठे हुक्मरान और नीति नियामक उसका उस तरह से उपयोग नहीं कर पाए। इस क्षेत्र से जुड़े कारोबारियों का मानना है कि इन संभावनाओं का अभी 25 प्रतिशत ही दोहन हो पाया है। अभी चारधाम यात्रा और तीर्थांटन के सहारे पर्यटन उद्योग का पहिया घूम रहा है। आज भी ब्रिटिश काल से स्थापित मसूरी व नैनीताल ही देश दुनिया से आने वाले पर्यटकों की सैरसपाटे के विकल्प हैं। 22 सालों में सरकारें पर्यटन स्थलों के नाम पर कोई नया डेस्टिनेशन तैयार नहीं कर पाई। अलबत्ता नए पर्यटन स्थल तैयार करने के लिए 13 डिस्ट्रिक्ट 13 डेस्टिनेशन योजना का सपना जरूर दिखाया गया। लेकिन यह सपना अभी सुस्त गति से आगे बढ़ रहा है। अभी तक चयनित स्थलों में अवस्थापना विकास की डीपीआर तक नहीं हो पाई है।
छह ही माह की कारोबार
राज्य में चारों धामों को जोड़ने के लिए बेशक सर्वऋतु महामार्ग योजना तैयार कर दी गई, लेकिन उत्तराखंड में पर्यटन का कारोबार अभी सीजनल ही है। छह महीने चलने वाली चारधाम यात्रा से ही पर्यटन कारोबार को संजीवनी मिलती है।
अर्थव्यवस्था में 35 फीसदी की हिस्सेदार
एक अनुमान के अनुसार, उत्तराखंड अर्थव्यवस्था में राज्य के पर्यटन सेक्टर का 35 फीसदी योगदान है। जानकारों का मानना है कि यह 50 फीसदी तक होना चाहिए। इसके लिए अवस्थापना विकास पर तो कार्य हुए हैं, लेकिन नए पर्यटक स्थल तैयार नहीं हो पाए।
इन झटकों से तबाह हो गया था कारोबार
2013 की आपदा और 2020 के कोरोना महामारी के झटकों ने राज्य के पर्यटन कारोबार को तबाही के मंजर पर ला दिया था। कारोबार से जुड़े करीब ढाई से तीन लोगों की आजीविका और 10 लाख से अधिक लोगों को परोक्ष रोजगार छिन गए थे।
अब गुलजार होने लगा उत्तराखंड
आपदा और कोरोना महामारी के झटकों से उबरने के बाद अब उत्तराखंड का पर्यटन कारोबार गुलजार होने लगा है। पिछले छह महीनों में चारधाम यात्रा पर करीब 44 लाख तीर्थयात्री उत्तराखंड आए। ये एक रिकार्ड है।
पर्यटन का बजट भी घटता गया
2004-05 में पर्यटन पर कुल बजट का 0.67 प्रतिशत खर्च हुआ
2020-21 में यह खर्च घट कर 0.46 प्रतिशत रह गया
35 फीसदी हिस्सेदारी है राज्य की अर्थव्यवस्था में पर्यटन क्षेत्र की
जमीन पर नहीं उतरे थीम आधारित डेस्टिनेशन
चार साल से 13 जिलों में 13 थीम आधारित डेस्टिनेशन जमीन पर नहीं उतर पाए। अल्मोड़ा जिले में सूर्य मंदिर कटारमल, नैनीताल में मुक्तेश्वर, पौड़ी से सतपुली व खैरासैंण झील, देहरादून में लाखामंडल, हरिद्वार में बावन शक्ति पीठ, उत्तरकाशी में हरकीदून व जखोल सर्किट, टिहरी में टिहरी झील, रुद्रप्रयाग में चिरबटिया, ऊधमसिंहनगर में द्रोण सागर, चंपावत में पाटी देवीधुरा, बागेश्वर में गरुड़ वैली, पिथौरागढ़ में मोस्टमानो व चमोली जिले में भराड़ीसैंण शामिल हैं। उत्तराखंड में पर्यटन के लिए सड़कों के नेटवर्क में सुधार हुआ। लेकिन नए पर्यटक स्थल नहीं बन पाए। सरकार अच्छे और सुविधाओं वाले नए पर्यटक स्थल तैयार करें। – विपुल डावर, पूर्व अध्यक्ष, सीआईआई, उत्तराखंड
राज्य गठन के बाद पर्यटन राज्य का जो सपना देखा था, उसका अभी तक 25 प्रतिशत भी पूरा नहीं कर पाए। पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे हिल स्टेशन बनाए जाएं। सरकार ऐसा सेंट्रल पोर्टल तैयार करे जहां पर्यटकों को पर्यटन से संबंधित सभी सूचनाएं प्राप्त हो सकें। – वीरेंद्र कालरा, पूर्व अध्यक्ष, पीएचडी, चैंबर्स
पर्यटन विकास की इन योजनाओं से उम्मीद
प्रदेश में पर्यटन विकास के लिए सरकार की कई योजनाएं प्रस्तावित हैं। इसमें 1210 करोड़ की टिहरी झील पर्यटन विकास परियोजना, 2430 करोड़ से सोनप्रयाग से केदारनाथ और गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब रोपवे, कुमाऊं मंडल के ऐतिहासिक मंदिरों को जोड़ने के लिए मानसखंड कॉरिडोर, होम स्टे योजना, ईको टूरिज्म, कैरावान टूरिज्म के अलावा एडवेंचर टूरिज्म की योजनाओं से पर्यटन क्षेत्र को उम्मीदें हैं। देश दुनिया के सैलानियों उत्तराखंड के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। धार्मिक पर्यटन में राज्य की पहचान है। अब साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में सरकार काम कर रही है। जिससे साल भर पर्यटक उत्तराखंड आएंगे। सीमांत गांवों में पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ ही नये पर्यटक स्थल विकसित किए जा रहे हैं। – सतपाल महाराज, पर्यटन मंत्री
राज्य स्थापना के समय प्रदेश के लोगों ने उत्तराखंड को पर्यटन राज्य बनाने का सपना देखा था, लेकिन 22 साल बाद भी हम
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