कोरोना संकट, मौसम का बिगड़ा मिजाज और चुनाव आयोग की बंदिशें। देवभूमि उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा का चुनाव प्रचार अभियान इसी कारण पिछले चुनावों की अपेक्षा इस बार बदला-बदला सा रहा। अंतिम दौर में आयोग से कुछ रियायत मिली तो सभी राजनीतिक दलों ने ताकत झोंक दी। मतदान से हफ्तेभर पहले दलों ने जिस तरह दिग्गजों को मैदान में उतारा और उनकी ताबड़तोड़ सभाएं कराई, वह इसकी बानगी है। ऐसे में समझा जा सकता है कि 70 विधानसभा सीटों का यह सीमांत और मध्य हिमालयी राज्य राजनीतिक दलों के लिए कितना महत्वपूर्ण है। अब जबकि, निर्णय की घड़ी आई है तो चुनाव मैदान में डटे प्रत्याशियों के साथ ही दिग्गजों की साख भी दांव पर है। ऐसे में दिग्गजों की आंखों से नींद गायब होना स्वाभाविक ही है। चुनाव में हार-जीत तो प्रत्याशियों की होगी, लेकिन यश-अपयश तो दिग्गजों के माथों पर ही आएगा। उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में जब विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई तो तब उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर चरम की ओर बढ़ने लगी। यही वजह रही कि आयोग ने चुनाव प्रचार में जनसभा, रैली, रोड-शो, बाइक रैली जैसे आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया था। एक फरवरी से कोरोना के मद्देनजर स्थिति में सुधार होने लगा तो चुनाव प्रचार की अंतिम तिथि से हफ्तेभर पहले आयोग ने भी राजनीतिक दलों को राहत दी। इसके तहत खुले मैदानों में बैठने की 30 प्रतिशत क्षमता के साथ सभाओं का सिलसिला तेज हुआ और राजनीतिक दलों ने इस रियायत का लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही कारण भी रहा कि चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में प्रदेशभर में स्टार प्रचारकों की धूम रही
उत्तराखंड में जीत के दावों के बीच दांव पर कई दिग्गजों की साख
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