पलायन से जूझ रहे उत्तराखंड में अब ग्राम प्रधान चुनने तक के लिए प्रत्याशी नहीं मिल रहे। नैनीताल जिले के बेतालघाट ब्लॉक के सीम और रोपा गांवों में बीते तीन वर्षों से ग्राम प्रधान के चुनाव नहीं हो पाए हैं। दरअसल, इन गांवों में ग्राम प्रधान की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।दोनों गांवों में अनुसूचित जाति के ज्यादातर नौजवान रोजगार की तलाश में गांव से महानगरों को पलायन कर चुके हैं। गांवों में बचे बुजुर्ग ग्राम प्रधान पद का चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं। ऐसे में ये दोनों गांव बीते तीन वर्षों से प्रशासकों के भरोसे चल रहे हैं। प्रदेश के बाकी हिस्सों की तरह बेतालघाट ब्लॉक भी पलायन से जूझ रहा है। इन दोनों गांवों में ग्राम प्रधान निर्वाचित नहीं हो पाने से बीते तीन सालों से गांव के विकास के लिए आया बजट ठीक तरह से खर्च नहीं हो पा रहा है। गांव में ही बन जाने वाले जन्म एवं मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के लिए ग्रामीणों को विकासखंड कार्यालय के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
बुजुर्ग नहीं लेना चाहते प्रधान पद की जिम्मेदारी
सीम गांव निवासी 70 साल वर्षीय दयाल राम का कहना है कि गांव में ग्राम प्रधान होना एक बड़ी जिम्मेदारी है। हम बुजुर्ग हैं खेतीबाड़ी के काम के बीच इतनी अधिक दौड़भाग नहीं कर पाते। इसलिए प्रधान का चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नहीं है। यदि गांव में ही रोजगार के मौके मिलते, तो यहां से पलायन नहीं होता।
पलायन के कारण उत्तराखंड के गांवों को नहीं मिल रहे प्रधान, पिछले तीन सालों से चुनाव का इंतजार
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