नई दिल्ली। भारत मलेरिया जैसी घातक बीमारी से निजात पाने की दिशा में निर्णायक दौर में पहुंच गया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अधीन राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान (एनआईएमआर) द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के 92 प्रतिशत जिलों में मलेरिया का प्रभाव अब बेहद कम रह गया है। बीते दस वर्षों में मलेरिया के मामलों में 80 से 85 प्रतिशत तक की बड़ी गिरावट दर्ज की गई है, जो भारत को मलेरिया उन्मूलन के बेहद करीब ले जाती है।
आईसीएमआर–एनआईएमआर की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015 से 2024 के बीच मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रमों का व्यापक असर देखने को मिला है। खासतौर पर वर्ष 2024 में देश के 92 प्रतिशत जिलों में मलेरिया का स्तर एक अंक से नीचे दर्ज किया गया, जिसे सार्वजनिक स्वास्थ्य की दृष्टि से मजबूत नियंत्रण का संकेत माना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अब “प्री-एलीमिनेशन फेज” में प्रवेश कर चुका है, यानी बड़े स्तर पर बीमारी का प्रसार लगभग थम चुका है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत ने 1960 के दशक में मलेरिया पर लगभग काबू पा लिया था, लेकिन 1970 के दशक के मध्य में यह बीमारी फिर से फैलने लगी। अब दशकों बाद एक बार फिर देश मलेरिया से पूरी तरह मुक्त होने की दहलीज पर खड़ा है। केंद्र सरकार ने 2030 तक भारत को मलेरिया-मुक्त राष्ट्र बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
मलेरिया प्लास्मोडियम परजीवी के कारण होने वाली एक जानलेवा बीमारी है, जो संक्रमित मादा एनोफिलीस मच्छर के काटने से फैलती है। ठहरा हुआ पानी मच्छरों के प्रजनन के लिए अनुकूल वातावरण बनाता है, जिसके चलते जुलाई से नवंबर के बीच, यानी मानसून के दौरान, इसके मामले अधिक सामने आते हैं। बच्चों में मलेरिया गंभीर एनीमिया, श्वसन संकट और सेरेब्रल मलेरिया जैसी जटिलताओं का कारण बन सकता है, जबकि वयस्कों में यह कई अंगों की विफलता तक ले जा सकता है। गर्भवती महिलाओं के लिए भी यह बीमारी गंभीर जोखिम पैदा करती है।
आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने कहा कि भारत ने पिछले एक दशक में मलेरिया नियंत्रण के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। अब देश उस मोड़ पर है, जहां थोड़े और केंद्रित प्रयासों से मलेरिया को स्थायी रूप से समाप्त किया जा सकता है।
पूर्वोत्तर और वन क्षेत्रों में बनी हुई है चुनौती
हालांकि रिपोर्ट यह भी बताती है कि पूर्वोत्तर राज्यों, घने जंगलों, सीमा क्षेत्रों और आदिवासी इलाकों में मलेरिया अब भी चुनौती बना हुआ है। दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियां, स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच और कई मामलों में बिना लक्षण वाले संक्रमण की पहचान कठिन होने के कारण उन्मूलन की प्रक्रिया धीमी पड़ती है। इसके अलावा दवाओं की नियमित आपूर्ति, रैपिड डायग्नोस्टिक किट की गुणवत्ता और मच्छर नियंत्रण में कीटनाशकों के प्रति बढ़ता प्रतिरोध भी बड़ी बाधाएं हैं।
शहरी इलाकों में बढ़ता अर्बन मलेरिया
रिपोर्ट में शहरी मलेरिया को लेकर भी चेतावनी दी गई है। निर्माण स्थलों पर जमा पानी, कंटेनरों में जलभराव और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में एनोफिलीस स्टेफेन्सी मच्छर की मौजूदगी के कारण अर्बन मलेरिया के मामले बढ़ रहे हैं। दिल्ली, गुरुग्राम, मुंबई और हैदराबाद जैसे बड़े शहर इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मौजूदा प्रयास और रणनीतियां इसी गति से जारी रहीं, तो भारत 2030 से पहले ही मलेरिया-मुक्त देशों की सूची में शामिल हो सकता है।