उत्तराखंड में ढाई साल के भीतर शिक्षा विभाग ने अमान्य प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी में आए 157 शिक्षकों को बर्खास्त किया है। लेकिन अमान्य प्रमाणपत्रों के बावजूद शिक्षकों को नौकरी के लिए हरी झंडी देने वाले अफसरों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की। ये सभी शिक्षक बेसिक और जूनियर स्तर के हैं और सबसे ज्यादा मामले हरिद्वार जिले के हैं। सूचना का अधिकार के तहत शिक्षा विभाग ने हालिया कुछ वक्त में नौकरी से हटाए गए शिक्षकों का ब्यौरा दिया है। वर्ष 2016-17 में तत्कालीन अपर मुख्य सचिव शिक्षा रणवीर सिंह ने अमान्य प्रमाणपत्र वाले शिक्षकों की जांच बिठाई थी। बाद में सरकार ने शिक्षकों की जांच की जिम्मेदारी एसआईटी को दे दी थी। एसआईटी की जांच में अब तक 110 शिक्षकों के शैक्षिक, जाति और अनुभव के प्रमाणपत्र ऐसे मिले हैं, जो उत्तराखंड में शिक्षक की नौकरी के लिए मान्य नहीं है। जहां शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई करने में विभाग तेजी दिखाई, वहीं इन नियुक्तियों के जिम्मेदार रहे अफसरों पर कोई एक्शन नहीं लिया गया।
हरिद्वार के मामले सबसे ज्यादा: शिक्षक भर्ती में गड़बड़ी के सबसे ज्यादा मामले हरिद्वार में मिले हैं।एसआईटी जांच के अनुसार यहां 50 शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की गई। जबकि दूसरे नंबर पर रुद्रप्रयाग है। यहां 23, देहरादून में 15 और यूएसनगर में 14 शिक्षकों के प्रमाणपत्र गलत पाए गए हैं।
प्राथमिक शिक्षक संघ ने उठाए सवाल: प्राथमिक शिक्षक संघ के दिग्विजय सिंह चौहान ने कहा कि जिन लोगों ने गलत प्रमाणपत्रों के जरिए नौकरी हासिल की, उनके खिलाफ कार्रवाई स्वागतयोग्य है। लेकिन उस वक्त जिन अधिकारियों ने ये नियुक्तियां की वो भी इस फर्जीवाड़े के लिए पूरे पूरे जिम्मेदार हैं। गलत व्यक्ति की नियुक्ति की वजह से जहां सरकार के खजाने के लाखों रुपये का चूना लगा है। वहीं इन लोगों की वजह से पात्र लोग नौकरी पाने से रह गए। नियुक्तियों के लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ भी सरकार एक्शन ले।
वर्तमान में अमान्य प्रमाणपत्र वाले शिक्षकों का चिह्नीकरण और अन्य कार्रवाई की जा रही है। नियुक्ति अधिकारियों की जवाबदेही पर भी विचार किया जा रहा है। आर.मीनाक्षीसुंदरम, शिक्षा सचिव
ढाई साल में 157 शिक्षक हुए बर्खास्त, शिक्षा विभाग में नियुक्ति देने वालों पर कब होगी कार्रवाई?
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