Thursday, October 31, 2024
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मेहनत से मुश्किलों को मात देकर मां ने दिलाया मुकाम

मां मेहंदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है, मां, मां मरूथल में नदी या मीठा सा झरना है। मां, मां पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है
दिवंगत कवि ओम व्यास ने मां पर जो कविता लिखी वह आज भी हर किसी को रुला देती है। मां शब्द ही ऐसा है। हर इंसान की सबसे पहली और सबसे अच्छी दोस्त मां ही है। हर सुख में सबसे ज्यादा खुश मां ही होती है। हर दुख में सबसे ज्यादा साथ भी मां ही देती है। मां का प्यार निस्वार्थ होता है। उसमें किसी प्रकार की बनावट नहीं होती। अपने बच्चों के लिए वह किसी भी प्रकार का कष्ट सहती है। उन्हें काबिल बनाने के लिए वह अभाव में जीती है। मदर्स डे पर आज हम कुछ ऐसी मां से रूबरू करा रहे हैं जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी अपने संकल्प को डिगने नहीं दिया। हर मुश्किल का उन्होंने ढाल बनकर सामना किया और बच्चों को मंजिल दिलाई।
पति का साथ छूटा तो तीन बेटियों को काबिल बनाया
काशीपुर। शिवनगर कॉलोनी निवासी सुदर्शना अरोरा उन महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने कभी भी जीवन में आए उतार-चढ़ाव से हार नहीं मानी। उन्होंने बताया कि उनकी तीन बेटियां हैं। पति ने जीवन भर साथ निभाने की कसम तो खाई लेकिन लगभग 14-15 साल पहले उनका साथ छोड़ दिया। तब उनके माता-पिता और भाई ने जीवनयापन में उनका साथ दिया। उनकी बड़ी बेटी दिव्या अरोरा ने बीसीए, एमसीए और बीएड किया है और वर्तमान में एक स्कूल में शिक्षिका हैं। छोटी बेटी श्रद्धा अरोरा बीकॉम, एमकॉम और बीएड करने के बाद एक कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। ऋषिता अरोरा 12वीं कक्षा में श्री गुरुनानक सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ रही हैं। दिव्या बताती हैं कि मां ने हम बहनों को कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि पिता या कोई भाई नहीं हैं। जब हम छोटे थे तब पिता जी हम लोगों को अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए छोड़ कर कहीं चले गए थे। दिव्या बताती हैं मुझे याद है मां हमेशा यही कहा करती थी कि जैसे भी हो मैं अपनी बेटियों को काबिल बनाऊंगी। हमारी मां ने वह करके दिखा भी दिया। हमारी मां हम तीनों बहनों को अपना बेटा और बेटी मानती हैं।
पत्थर तोड़कर, बर्तन मांजकर तीनों बेटों को काबिल बनाया
रुद्रपुर। इंदिरा कालोनी निवासी 68 वर्षीय परमजीत कौर ने पति के निधन के बाद मुफलिसी में दिन काटे। बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए कभी सड़कों पर पत्थर तोड़े तो कभी बर्तन मांजे। इस सबके बावजूद एक बेटे को बी फार्मा कराया। आज तीनों बेटे मिलकर मेडिकल स्टोर चला रहे हैं।
परमजीत कौर बताती हैं कि पति बलवीर सिंह राइस मिल में श्रमिक थे। एक बेटी और तीन छोटे बेटों के साथ किसी तरह गुजर-बसर चल रहा था। वर्ष 2009 में पति का आकस्मिक निधन हो गया। उसके बाद कमाई का कोई जरिया न होने और तीन बेटों की परवरिश का संकट खड़ा हो गया। बेटी बड़ी थी, उसकी शादी हो चुकी थी। तीन बेटों में बड़े बेटे जसवीर सिंह की उम्र 15 साल थी। परमजीत ने खुद को मजबूत किया। परिवार की गाड़ी को खींचने के लिए वह मजदूरी करने लगीं। परमजीत ने कहीं पत्थर तोड़े तो कभी मजदूरी कर बच्चों का पेट पाला। परमजीत कौर ने बताया कि एक समय ऐसा भी था जब बच्चों को दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पाती थी। बारिश के दिनों में घर में पानी भर जाता था। इस बीच एक स्कूल में आया का काम मिल गया। उसमें महीने में 1200 रुपये मिला करते थे। इस बीच परिवार में आर्थिक तंगी देख जसवीर ने हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ दी और मेडिकल स्टोर पर काम करने लगा। दोनों ने मिलकर मंझले जगजीत को स्नातक कराया और छोटे चरनजीत सिंह ने बी-फार्मा किया। अब तीनों भाई मेडिकल स्टोर चलाकर सुखी जीवन जी रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने अपना घर की भी मरम्मत कर ली है। परमजीत कौर ने कहा कि तीनों बेटों ने उन्हें अमृतसर ले जाकर स्वर्ण मंदिर के दर्शन कराए हैं। यह पल मेरी जिंदगी का सबसे अनमोल था।
रिंकी के हौसले और जज्बे को लोग करते हैं सलाम
किच्छा। रिंकी गोस्वामी वह महिला है जिसे किच्छा की पहली महिला टुकटुक चालक होने का गौरव प्राप्त है। नगरवासी उसके हौसले व लगन की तारीफ करते हुए उसका उत्साहवर्द्धन करते हैं। रिंकी ने कहा कि मेहनत करने में शर्म कैसी। उनका कहना है कि लोग उसकी मेहनत पर आशीर्वाद देते हैं। लोगों के आशीर्वाद से वह अपने तीन बच्चों को अच्छा पढ़ा-लिखा रही हैं।
इन दिनों एक महिला को टुकटुक चलाते देख लोग इसलिए हैरान होते हैं क्योंकि यह नगर की पहली महिला है जो रोजी रोटी के लिए रेलवे स्टेशन से बाजार और बाजार से बस अड्डे तक सवारियां ढो रही है। रिंकी ने बताया कि उनका मायका खटीमा में हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्होंने किच्छा की एक कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की। वेतन मिलने से हौसला बढ़ गया। बाद में कंपनी में बंद हो गई। इस बीच विवाह हुआ तो दो बेटियां कामिनी, अंजली और बेटे राघव का जन्म हुआ। पति राकेश गिरी का वेतन अधिक न होने के कारण बच्चों की पढ़ाई की समस्या हुई तो उन्होंने पति से टुक टुक चलाकर रोजगार करने की बात कही जिस पर पति ने टुक टुक खरीद दिया। रिंकी का कहना है कि वह 15 बच्चों को स्कूल पहुंचाती हैं जिससे 10 से बारह हजार रुपये महीना आ जाता है। जो समय बचता है उससे बाजार में सवारियां ढोती हैं।
इससे भी रोज चार से पांच सौ रुपये मिल जाता है जिससे घर का सारा खर्च चलता है। उनका कहना है कि महिलाओं को काम में शर्म नहीं करनी चाहिए। अगर वह शर्म करतीं तो अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाती। अब सपना है कि किराये के मकान से मुक्ति मिल जाए और अपना घर बने। टुकटुक चलाने पर हर आदमी उसे हौसला देकर तारीफ करता है। जब वह खड़ी होती है तो सवारियां उसके टुकटुक पर बैठना पसंद करती हैैं। महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रहीं रिंकी कहती हैं कि हमें अपनी बेटियों को शिक्षित करना चाहिए। सरकार को लड़कियों की शिक्षा को पूरी तरह मुफ्त कर देना चाहिए क्योंकि अगर आप अपनी बेटी को शिक्षित कर देते हो तो दो परिवार के साथ-साथ आने वाली पीढ़ी भी शिक्षित होगी।

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