बागेश्वर। इंसान के भविष्य को तय करने में शिक्षक या गुरु का अहम योगदान होता है। कई शिक्षक विद्यार्थियों को सिर्फ किताबी ज्ञान का ही बोध कराते हैं लेकिन कुछ शिक्षक विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए कार्य करते हैं। ऐसे ही शिक्षकों में शुमार हैं दुर्गम क्षेत्र जीआईसी सलानी के कला शिक्षक डॉ. हरीश दफौटी। उनकी मेहनत और लगन का ही परिणाम है कि जिस विद्यालय के छात्र-छात्रा ब्लॉक स्तर की गतिविधि में भागीदारी नहीं कर पाते थे। आज प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के कला उत्सव में अपना नाम दर्ज करा रहे हैं। चमोली जिले की सीमा से लगे लाहुरघाटी के एकमात्र जीआईसी सलानी में वर्ष 2011 में डॉ. हरीश की नियुक्ति कला शिक्षक के रूप में हुई। उन्होंने देखा कि ग्रामीण परिवेश के विद्यार्थी काफी संकोची स्वभाव के थे। वह खेलकूद, कला, शिल्प के प्रति अधिक रुचि नहीं दिखाते। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित किया और एक साल तक गांव में ही कमरा किराए पर लेकर रहे।
इस दौरान उन्होंने विद्यार्थियों को खेलकूद और अन्य गतिविधियों में भागीदारी के लिए तैयार किया। उनकी नियुक्ति के एक साल बाद वर्ष 2012 में सलानी की कबड्डी टीम ने राज्य स्तर की प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया। वर्ष 2013 में डॉ. हरीश का तबादला अन्यत्र हो गया। एक साल बाद 2014 में फिर उन्हें इसी विद्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया। विद्यालय में दोबारा आने पर उन्होंने फिर विद्यार्थियों को कला, खेलकूद, शिल्प की तैयारी कराई और एक साल बाद से लगातार विद्यालय से कला उत्सव और खेलकूद में विद्यार्थी बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं।
निजी खर्च से करते हैं विद्यार्थियों की मदद
बागेश्वर। शिक्षक दफौटी कला के अलावा खेलकूद में विशेष रुचि रखते हैं। वह राज्य स्तरीय बैडमिंटन में भागीदारी कर चुके हैं। कराटे में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की कराटे प्रतियोगिता में उन्होंने कांस्य पदक जीता। वह विद्यालय में रिंगाल, बगेट (चीड़ की छाल) से कलाकृतियां बनाना का प्रशिक्षण देने के लिए अतिरिक्त कक्षाएं चलाते हैं। विद्यार्थियों को सामान खरीदने के लिए निजी खर्च से मदद करते हैं। खिलाड़ियों को भी समय-समय पर प्रोत्साहन देते हैं। इसी कारण विद्यालय के संकोची विद्यार्थी भी देश-प्रदेश में स्कूल का नाम रोशन कर रहे हैं।
कला के संरक्षण को खोला कलांजय कलाधाम
बागेश्वर। शिक्षक दफौटी ने शिल्पकला के संरक्षण के लिए कलांजय कलाधाम की स्थापना की है। इस केंद्र के माध्यम से उनके शिष्य प्रमोद को जिला शिल्प रत्न पुरस्कार मिल चुका है। कलांजय में बने बगेट के फैंसी उत्पादों को जिले में होने वाले प्रमुख आयोजनों में प्रतीक चिह्न के रूप में मंगाया जाता है। ऑनलाइन माध्यम से भी उनके बनाए पारंपरिक उत्पादों को देशभर में पहचान मिल रही है। दुर्गम ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों में प्रतिभा की कमी नहीं है। उन्हें प्रोत्साहित करने और निखारने की जरूरत है। मैंने पढ़ाई को आसान बनाने के लिए बच्चों को कला और खेलकूद से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। संचार विहीन दुर्गम क्षेत्र के बच्चे जब प्रदेश और देश में विद्यालय और जिले का नाम रोशन करते हैं तो देखकर गर्व होता है। – डॉ. हरीश दफौटी, कला शिक्षक, राइंका सलानी।
शिक्षा और बच्चों के विकास को समर्पित रहने वाले शिक्षक अन्य शिक्षकों के लिए भी प्रेरणास्रोत का कार्य करते हैं। इन शिक्षकों की बदौलत ही सरकारी शिक्षा के प्रति अभिभावकों का भरोसा बढ़ता है। डॉ. हरीश दफौटी का कार्य सराहनीय है और अन्य शिक्षकों को भी इससे प्रेरणा मिलेगी। – जीएस सौन, सीईओ, बागेश्वर।
कला शिक्षक की मेहनत ने विद्यालय को दिलाई नई पहचान
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