चुनावी माहौल में सीमांत क्षेत्र के प्रश्न भी कहीं सीमांत पर ही नजर आ रहे हैं। राजनीतिक दल सत्ता में आने पर मुफ्त सेवाओं का वादा कर रहे हैं, जबकि पहाड़ी क्षेत्र का विकास एक जागरूक वर्ग में विमर्श का विषय बनता जा रहा है। सामान्य तौर पर जिस क्षेत्र का विकास होता है, उसके लाभार्थी भी वहां के क्षेत्रवासी ही होते हैं, लेकिन यह भी तथ्य है कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र का विकास क्षेत्रवासियों के साथ ही देश के व्यापक हित में भी होता है। 625 किलोमीटर चीन व नेपाल से लगने वाली सीमा, 71.05 प्रतिशत वन भूभाग और चारधाम उत्तराखंड को छोटा राज्य होते हुए भी महत्वपूर्ण बना देते हैं। सीमांत क्षेत्र का विकास दरअसल देश की सुरक्षा की पहली शर्त है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह समझा और राज्य के सामरिक, धार्मिक व पर्यावरणीय महत्व को समझते हुए कुछ बड़ी परियोजनाओं पर काम शुरू किया गया है। राज्य में विकास के कार्य पहले की सरकारों में भी हुए हैं, लेकिन पिछले पांच-सात सालों में सामरिक महत्व की दृष्टि से बड़ी योजनाओं पर काम हुए, जिसकी प्रगति जमीन पर भी दिख रही है। चारधाम आल वेदर रोड, ऋषिकेश- कर्णप्रयाग रेलवे लाइन, सीमांत क्षेत्र विकास परियोजना व पर्वतमाला जैसी योजनाएं विकास के साथ-साथ सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। चीन सीमा पर गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग तैयार हो चुका है। पिथौरागढ़ से हिमाचल तक चीन सीमा के समानांतर मिलम-चमोली तक 76 किमी मार्ग की स्वीकृति मिल चुकी है। ढांचागत विकास से अगर सीमांत क्षेत्रों से पलायन रुकता है तो स्वाभाविक रूप से सीमांत प्रहरियों की पंक्ति ही खड़ी होती है।
सीमा सुरक्षा: मील के नए पत्थर, आसान हुआ सफर; सीमांत क्षेत्र विकास कार्यक्रम से पलयान थमने की उम्मीद
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