चंपावत। वर्ष 1893 में शिकागो के धर्म सम्मेलन से दुनियाभर में आध्यात्मिक पताका फहराने वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद का चंपावत जिले से ताल्लुक रहा है। लेकिन उनकी विरासत से जुड़े कई स्थानों को लेकर भी खास संजीदगी नहीं है। यहां तक कि स्वामी जी की स्मृतियों को सहेजने वाले दियूरी के डाकबंगले को तोड़ने के बाद उसके स्थान पर बनाए जा रहे ध्यान केंद्र का भी काम रूप गया है।
यहां से 25 किमी दूर दियूरी में स्वामी जी की स्मृति से जुड़े डाकबंगले को तोड़ पिछले साल से ध्यान केंद्र बनाने का काम शुरू हुआ लेकिन स्वामी जी की स्मृति से जुड़े ध्यान केंद्र का काम भी बजट की कमी से रुक गया है। पिछले महीने से यह काम रुका है। ध्यान केंद्र के निर्माण के लिए स्वीकृत 22.95 लाख रुपया खर्च हो चुका है। इस राशि से ध्यान केंद्र में दो कमरे सहित भवन का काम तो पूरा हो गया है लेकिन रंगरोगन समेत स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा स्थापित नहीं हो सकी है।
121 साल पहले दियूरी में रुके थे स्वामी विवेकानंद
चंपावत। आध्यात्मिक महापुरुष स्वामी विवेकानंद का दियूरी से गहरा नाता रहा है। दियूरी के जिस डाकबंगले में स्वामी जी 19 जनवरी 1901 में ठहरे थे, उसे ढहा कर ध्यान केंद्र बनाया जा रहा है। दियूरी के अलावा चंपावत जिले में स्वामी जी मायावती आश्रम और चंपावत में टीवी टावर में बने जिला पंचायत के डाकबंगले में भी रुके थे। स्वामी जी से जुड़े साहित्य में इस बात का जिक्र है कि चंपावत से स्वामी जी को डोली से दियूरी ले जाया गया था। डाक बंगले में स्वामी जी और उनके साथियों (गुरु भाई स्वामी सदानंद और स्वामी विरजानंद के अलावा अल्मोड़ा के लाला गोविंद लाल शाह) ने घी और भात खाया। दियूरी क्षेत्र के ग्रामीण कहते हैं कि स्वामी जी के यहां रात रुकने की जानकारी उनके बड़े-बुजुर्ग भी बताते थे। लोगों का कहना है कि महत्वपूर्ण विरासत वाले डाकबंगले को ढहाना नहीं चाहिए था। ढहाने के बाद ध्यान केंद्र के काम में लापरवाही ठीक नहीं है। इसका निर्माण पूरा कर इसका जल्द संचालन किया जाए। दियूरी के ध्यान केंद्र के लिए मिली राशि खत्म हो गई है। अब स्वामी विवेकानंद की मूर्ति, सुरक्षा दीवार, फिनिशिंग कार्यों के लिए 20 लाख रुपये की मांग की गई है। – विभोर गुप्ता, ईई, लोनिवि खंड, चंपावत।