वैश्विक तापमान की बढ़ोतरी के चलते विश्व प्रसिद्ध पिंडारी ग्लेशियर पिछले 40 वर्षों में करीब 700 मीटर पीछे खिसक गया है। पिंडारी यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले बुग्यालों में भी लगातार भूस्खलन हो रहा है। पर्यावरणविदों ने इस पर चिंता जाहिर की है। ग्लेशियर का हिमक्षेत्र कम होता जा रहा है, जिसका असर बुग्यालों पर भी पड़ रहा है। पिंडारी ग्लेशियर यात्रा मार्ग में पड़ने वाले बुग्यालों में पिछले कुछ वर्षों में भूस्खलन बढ़ रहा है। द्वाली में बने लोक निर्माण विभाग और कुमाऊं मंडल विकास निगम के विश्राम गृह के समीप भी भूस्खलन हो रहा है। मखमली घास के लिए पहचाने जाने वाले बुग्याल रोखड़ में बदल रहे हैं। ग्लेशियरों के पिघलने और बुग्यालों में बढ़ रहे भूस्खलन भविष्य में किसी बड़े खतरे का संकेत दे रहे हैं। वॉडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून से सेवानिवृत्त सीनियर हिम वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल कहते हैं कि पिंडारी ग्लेशियर भी अन्य ग्लेशियरों की भांति पीछे जा रहा है। मौसम में बदलाव, ग्रीष्म ऋतु का समय बढ़ना, बर्फबारी में कमी भी इसका एक कारण है। पिंडारी ग्लेशियर सीधे पहाड़ पर है, ऐसे में यहां गिरने वाली बर्फ रुकती कम है।
गैस, बिजली और वाहन पहुंचा रहे सर्वाधिक नुकसान : साह
हिमालयन माउंटेनियर्स क्लब के सचिव आलोक साह गंगोला बताते हैं कि गैस, बिजली, वाहन तीन ऐसे कारक हैं, जो ग्लेशियरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। विकास की दौड़ में ये तीन कारक प्रमुख स्थान रखते हैं तो यही तीन कारक ग्लेशियरों के नुकसान में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। पिंडारी ग्लेशियर यात्रा मार्ग में बुग्यालों में बढ़ रहा भूस्खलन चिंताजनक है। वन विभाग की टीम के साथ क्षेत्र का मुआयना कर रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट के आधार पर बुग्याल संरक्षण का प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा जाएगा। – हिमांशु बागरी, डीएफओ बागेश्वर
ग्लेशियर पर मंडरा रहा खतरा, बुग्यालों में बढ़ रहा भूस्खलन, 40 साल में 700 मीटर पीछे खिसका
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