कोरोना संक्रमण और अन्य वजहों से ई-नाम योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है। किसानों की उपज को बेहतर बाजार नहीं मिल रहा है। इसी का नतीजा है कि जिस ई-नाम योजना के माध्यम से किसानों ने 2019-20 में अपनी उपज बेचकर पौने 3 करोड़ रुपये कमाए थे, उसी योजना से इस साल अब तक 50 लाख रुपये का माल तक नहीं बेचा जा सका है। बहरहाल, मंडियों में मंडी शुल्क और सेस दोबारा लागू होने से ई-नाम योजना के घाटे से उभरने की संभावना जताई जा रही है। हाल ही में, मंडी परिषद रुद्रपुर ने ई-नाम पोर्टल से हटाए गए विकास सेस मद को फिर से लागू करने के निर्देश मंडियों को दिए हैं। इससे सीधे तौर पर किसानों को भी लाभ मिलेगा।
किसानों को उनके उत्पाद का उचित दाम मिल सके, इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक्स-राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना (ई-नाम) शुरू की गई। 2017 में शुरू की गई इस योजना में उत्तराखंड की 16 मंडियों को भी जोड़ा गया। प्रत्येक मंडी में करीब 70 लाख रुपये की लागत से लैब स्थापित की गई। ई-नाम के माध्यम से देश के किसी भी हिस्से में व्यापारी ऑनलाइन कृषि उत्पाद खरीद सकता है। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलने की खूबी भी इस योजना में थी। लेकिन कुछ सालों बाद ही कोरोना संक्रमण के कारण योजना पर ब्रेक लग गया। लॉकडाउन के कारण किसान अपनी उपज मंडी तक नहीं पहुंचा सके। देहरादून, रुड़की, जसपुर समेत कई मंडियां कुछ दिन के लिए बंद कर दी गई थी। इसी बीच केंद्र सरकार ने 5 मई 2020 को अध्यादेश जारी कर मंडियों के बाहर उत्पाद बेचने पर मंडी शुल्क व विकास सेस नहीं लिए जाने का ऐलान कर दिया। जिसके बाद विकास सेस समाप्त कर दिया गया। इससे मंडियों को हर माह होने वाली करोड़ों रुपये की आय खत्म हो गई। ई-नाम योजना में आउटसोर्स पर रखे गए कर्मचारियों को भी हटा दिया गया। इस वजह से खरीदारी ठप हो गई। हालांकि, बीते साल दिसंबर में शासन ने उत्तराखंड कृषि उत्पाद मंडी (विकास एवं विनियमन) पुनर्जीवित अधिनियम, 2021 को लागू कर दिया। इससे मंडियों को मंडी शुल्क व विकास सेस लेने का अधिकार फिर से मिल गया। इधर, हाल ही में मंडी परिषद रुद्रपुर की प्रबंध निदेशक निधि यादव ने पत्र जारी कर ई-नाम पोर्टल पर विकास सेस लागू करने के निर्देश दिए हैं।
किसानों को ई-नाम योजना के घाटे से उबारेगा विकास सेस
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