उत्तराखंड में ” विधानसभा बैकडोर भर्ती में भ्रष्टाचार व अनियमितता ” के विषय पर अबतक अपने करीबियों को भ्रष्टाचार से नौकरी लगाने में शामिल सभी विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्रियों पर भी सरकार ने चुप्पी साधी हुई है , अतः विधानसभा भर्ती में भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगाने वाले ताकतवर लोगों पर हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में जांच कराने हेतु व लूट मचाने वालों से ” सरकारी धन की रिकवरी ” हेतु देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिका चल रही है । इस पर याचिकाकर्ता ने विषय को महत्वपूर्ण बताते हुये सुनवाई की अपील करी, जिसका माननीय हाईकोर्ट ने गंभीरता से संज्ञान लिया और 30.11.2022 को सरकार को 8 हफ्ते में जवाब दाखिल करने के आयोग दिए पर दुर्भाग्यपूर्ण है की कई महीने बीत जाने के बाद भी सरकार अब तक गंभीर नजर नही आ रही है। याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने पूर्व में उत्तराखंड सरकार व विधानसभा से आरटीआई के माध्यम से कई सूचना एकत्रित करके माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में अपनी जनहित याचिका के माध्यम से “विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाले ” को खोला । अभी याचिकाकर्ता अभिनव थापर को उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय का दिनांक 21.03.23 का एक सरकारी आदेश नीरज थापा उप सचिव व अपीलीय अधिकारी विधानसभा द्वारा जारी किया गया, जिसमे स्पष्ट रूप से उल्लेखित है की अनुरोध “इंग्लिश में किया गया है” व जिन अंग्रेजी भाषा के कारण उसे स्वीकारा जाना संभव नहीं है ।
जबकि RTI Act 2005 के धारा 6/1 में स्पष्ट उल्लेख है की “सूचना अभिप्राप्त करने के लिए अनुरोध – (1) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन कोई सूचना अभिप्राप्त करना चाहता है, लिखित में या इलैक्ट्रानिक युक्ति के माध्यम से अंग्रेजी या हिन्दी में या उस क्षेत्र की, जिसमें आवेदन किया जा रहा है, राजभाषा में ऐसी फीस के साथ, जो विहित की जाए” किंतु अंग्रेजी में प्रथम अपील लगाने के बाद विधानसभा सचिवालय के उप सचिव स्तर के अपीलीय अधिकारी द्वारा यह जवाब एक आश्चर्यजनक रूप से न सिर्फ संशय पैदा करता है बल्कि इनकी विधानसभा बैकडोर भर्तियों की शैक्षिक योग्यताएं और विधानसभा में बैकडोर द्वारा कार्यरत अधिकारियों की कार्य-क्षमता पर संदेह उत्पन करता है। यह भी अवगत कराना है की जो अभी कार्यवाही नैनीताल हाईकोर्ट मे जनहित याचिका व अन्य केसों के माध्यम से विधानसभा सचिवालय द्वारा की जा रही , वो सब कार्यवाही ” अंग्रेजी ” में ही होती है और इन सबके बावजूद इस प्रकार का पत्र याचिकाकर्ता को लिखना एक संदेह का विषय पैदा करता है और यह प्रतीत होता है की सरकार की कुछ छुपाने की मंशा है।
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने कहा कि इन सबसे एक चीज तो स्पष्ट रूप से सामने है की विधानसभा बैकडोर भर्ती के द्वारा जिन लोगो को राज्य बनने के बाद से 2000 से 2022 तक जो नौकरियां प्राप्त की है, उनकी योग्यता व शैक्षणिक के स्तर का पोल जनता के सामने खुलती नजर आ रही है । एक तरफ राज्य में 10 लाख शिक्षित बेरोजगार सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार की CBI माँग हेतु संघर्ष कर रहे है वहीं दूसरी ओर विधानसभा में सरकारी पदों पर ऐसे लोग बैठा रखे है। याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने बताया कि ” याचिका में मांग की गई है की राज्य निर्माण के वर्ष 2000 से 2022 तक समस्त नियुक्तियों की जाँच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में किया जाय और भ्रष्टाचारियों से सरकारी धन के लूट को वसूला जाय। सरकार ने पक्षपातपूर्ण कार्य कर अपने करीबियों को नियमों को दरकिनार करते हुए नौकरियां दी है जिससे प्रदेश के लाखों बेरोजगार व शिक्षित युवाओं के साथ धोखा किया है, यह सरकारों द्वारा जघन्य किस्म का भ्रष्टाचार है और वर्तमान सरकार भी दोषियों पर कोई कार्यवाही करती दिख नही रही है ।”
उल्लेखनीय है की भाजपा के पूर्व सांसद, पूर्व कानून मंत्री व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर, प्रेस वार्ता व अपने सोशल एकाऊंट से ट्वीट कर विधानसभा से निलंबित 228 कर्मचारियों के पुनः बहाली हेतु आग्रह किया। इससे उत्तराखंड के युवाओं के हितों एवं हक-हकूक की रक्षा हेतु याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने पुरजोर विरोध भी किया है।उल्लेखनीय है कि जिस मुख्यमंत्री को डॉ स्वामी ने पत्र लिखा है उनके अपने रिश्तेदार इन बर्खास्त 228 कर्मचारियों में से है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की रिश्तेदार एकांकी धामी सहित 72 लोगों को मुख्यमंत्री धामी द्वारा अपने सर्वोच्च विशेषाधिकार “विचलन” का दुरुपयोग कर 2022 में नियुक्ति प्रदान की गई थी, जिसमें तत्कालीन स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल , भाजपा संगठन मंत्री अजय कुमार आदि के रिश्तेदारों को भी नियुक्ति प्रदान की गयी है।
” उत्तराखंड में विधानसभा बैकडोर भर्ती अफसरों की शैक्षिक स्तर, कार्यक्षमता व कार्यशैली की खुली पोल ” – अभिनव थापर।
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