यूपीसीएल पीक आवर में बाजार से महंगी दरों पर बिजली खरीदने पर होने वाले अतिरिक्त खर्च को उपभोक्ताओं से ही वसूलने की तैयारी कर रहा है। इसका प्रस्ताव तैयार कर नियामक आयोग को भेजा जा चुका है। लेकिन नियामक आयोग की ओर से तय दरों से कम पर बिजली खरीदने पर कुल बिल घट भी जाएगा। नियामक आयोग में यूपीसीएल ने जो याचिका दायर की है, उसमें महंगाई के साथ सस्ती बिजली का बंटवारा भी परिभाषित किया गया है। मान लो कि नियामक आयोग ने यूपीसीएल के लिए बिजली की खरीद का दाम 4 रुपये प्रति यूनिट तय किया हुआ है। किसी महीने यूपीसीएल की औसत खरीद 5 रुपये प्रति यूनिट आती है। तो एक रुपये की रिकवरी सभी 27 लाख उपभोक्ताओं से की जाएगी। इस एक रुपये का बंटवारा यूपीसीएल की ओर से महीने भर में बेची गई औसत बिजली से होगा।
एक रुपये प्रति यूनिट की कमी
मसलन अगर यूपीसीएल 1000 मिलियन यूनिट यानी 100 करोड़ यूनिट बेचता है तो इस पर एक रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से यूपीसीएल 100 करोड़ रुपये उपभोक्ताओं से वसूलेगा। इस हिसाब से करीब एक रुपये प्रति यूनिट तक का भार बढ़ सकता है। इसी प्रकार, अगर यूपीसीएल निर्धारित चार रुपये यूनिट के बजाए महीने भर में औसत तीन रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली खरीद करता है तो उपभोक्ताओं के बिल में उसी हिसाब से करीब एक रुपये प्रति यूनिट की कमी आ जाएगी।
37 दिन के भीतर होगी वसूली
महीने में यूपीसीएल जो भी ज्यादा महंगी बिजली खरीदेगा, उसकी रिकवरी उपभोक्ताओं के बिलों में 37 दिनों के भीतर आ जाएगी। इसके लिए यूपीसीएल को नियामक आयोग की अनुमति की भी जरूरत नहीं होगी। वह सीधे तौर पर उपभोक्ताओं से रिकवरी कर सकते हैं।
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