राज्य स्थापना के वक्त उत्तराखंड की नदियों से जल विद्युत उत्पादन का सपना दिखाकर नीति नियामकों ने ऊर्जा प्रदेश बनाने का जो सपना दिखाया था, वह आज भी अधूरा है। आज भी दूसरे राज्यों से खरीदी गई महंगी बिजली से उत्तराखंड के घर रोशन हो रहे हैं। बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं से उत्तराखंड को अपने हिस्से की बिजली की दरकार है तो बाकी परियोजनाओं में पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने की मुश्किलें। बहरहाल, ऊर्जा प्रदेश आज भी एक सपना ही है।
मांग 2600 मेगावाट, उपलब्धता 500 से 1300 मेगावाट
प्रदेश में बिजली परियोजनाएं स्थापित करने के लिए उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड(यूजेवीएनएल) बनाया गया है। यूजेवीएनएल की जितनी भी परियोजनाएं हैं, उनसे 500 से 1300 मेगावाट तक बिजली का उत्पादन होता है। जबकि इस साल बिजली की मांग रिकॉर्ड 2600 मेगावाट के स्तर तक पहुंच चुकी है। ऊर्जा प्रदेश में हकीकत यही है कि आज भी प्रदेश में घरों को रौशन करने के लिए यूपीसीएल को बाजार से ही महंगे दामों पर बिजली खरीदनी पड़ रही है।
जल विद्युत परियोजनाओं का सपना अधूरा
प्रदेश में नदियों पर जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित कर ज्यादा से ज्यादा बिजली पैदा करने का सपना देखा तो गया लेकिन यह अधूरा ही है। 24 बड़ी परियोजनाएं तो ऐसी हैं, जिन पर पर्यावरणीय आपत्तियों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई हुई है। इन परियोजनाओं के बनने के बाद कुछ बिजली उत्पादन बढ़ने की संभावना है।
हिस्सेदारी का कानूनी हक, एक पाई भी नहीं मिली
टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड का टिहरी में केंद्र की 75 और यूपी की 25 फीसदी हिस्सेदारी वाला संयुक्त उपक्रम है। प्रदेश सरकार का तर्क है कि उत्तरप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 47(3) के अनुसार, जिस राज्य में जो परिसंपत्ति होगी, उस पर उस राज्य का भी हक होगा। उत्तरप्रदेश से विभाजन की तिथि तक कंपनी में किए गए पूंजीगत निवेश के आधार पर इसे उत्तराखंड को हस्तांतरित होना चाहिए, क्योंकि इसका मुख्यालय उत्तराखंड में है, लेकिन परियोजना से राज्य को एक पाई भी नहीं मिली है।
सौर ऊर्जा भी दूर की कौड़ी
प्रदेश में ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सौर ऊर्जा के लिए सरकारों ने बड़े दावे किए हैं लेकिन अभी इसका बिजली उत्पादन दूर की कौड़ी है। हालात यह हैं कि मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना के लक्ष्य के सापेक्ष महज 30 प्रतिशत ही प्रोजेक्ट आवंटित हो पाए हैं। यूपीसीएल की सौर ऊर्जा परियोजना से भी ऊर्जा बचत का लक्ष्य काफी पीछे है।
दावों, वादों और भाषणों में ही उत्तराखंड बना ऊर्जा प्रदेश, 22 साल में भी पूरा नहीं हुआ सपना
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