उत्तराखंड में प्रवेशोत्सव, स्कूल चलो अभियान, एमडीएम जैसी योजनाओं में लाखों-करोड़ों का बजट खपाने के बावजूद शिक्षा महकमा सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या नहीं बढ़ा पा रहा है। बिजली, पानी, इंटरनेट, शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं से महरूम स्कूलों से छात्र-छात्राओं का मोहभंग हो रहा है।स्थिति ये है कि पिछले 4 सालों में प्रदेशभर के प्राथमिक, जूनियर हाईस्कूल और माध्यमिक स्कूलों में 1 लाख से अधिक छात्र घट गए हैं। इनमें से करीब 60% छात्र अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, पौड़ी, टिहरी, नैनीताल जैसे पहाड़ी जिलों के हैं। पहाड़ों से पलायन की मुख्य वजहों में से एक बदहाल शिक्षा व्यवस्था भी है।
सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कई तरह की योजनाएं संचालित की जाती हैं। ऐसी ही एक योजना 1 जुलाई 2001 को उत्तराखंड में भी शुरू हुई। स्कूल चलो अभियान नाम की इस योजना का उद्देश्य 6 से 14 साल तक के बच्चों को शत-प्रतिशत प्रारंभिक शिक्षा दिलाना था।
वहीं, अप्रैल 2018 में राज्यभर के स्कूलों में सत्र शुरू होते ही प्रवेशोत्सव अभियान शुरू किया गया। जिसका उद्देश्य सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं की संख्या बढ़ाना था। इसके अलावा मई 2002 में दून के सहसपुर विकासखंड से मध्याह्न भोजन योजना की भी शुरुआत की गई। एमडीएम योजना शुरू करने के पीछे उद्देश्य बच्चों को पौष्टिक आहार की उपलब्धता कराना बताया गया लेकिन असल मायने में इस योजना को भी विद्यालयों में नामांकन वृद्धि के तौर पर देखा जाने लगा। इन सभी योजनाओं के संचालन में केंद्र और राज्य सरकारें हर साल करोड़ों रुपये का बजट जारी करती हैं लेकिन, धरातल पर शायद ही योजनाओं का कोई प्रतिफल निकलता दिखाई दिया। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में साल 2018 से 2021 तक 1 लाख 9 हजार 960 छात्र कम हुए हैं।
चार साल में सरकारी स्कूलों में कम हो गए एक लाख छात्र,बिजली-पानी सहित इन वजहों से छात्रों ने छोड़े स्कूल
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