Monday, November 25, 2024
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काशी की तर्ज पर होगा केदारनाथ-तमिल संगमम, भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आया विचार, जानें वजह

काशी-तमिल संगमम के सफल आयोजन से उत्साहित केंद्र सरकार उत्तराखंड में भी केदारनाथ-तमिल संगमम करने पर विचार कर रही है। काशी के बाद ऐसा दूसरा आयोजन 17 से 26 अप्रैल तक गुजरात में होना है। केदारनाथ-तमिल संगमम को लेकर हालांकि सरकार और संगठन के स्तर पर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है, लेकिन सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को लेकर उत्तर और दक्षिण के ज्ञान और सांस्कृतिक परंपराओं को करीब लाने के लिए पार्टी को केंद्रीय नेतृत्व से दिशा-निर्देश अवश्य मिले हैं। बदरी-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय कहते हैं, केदारनाथ-तमिल संगमम की अभी आधिकारिक जानकारी नहीं है, लेकिन यह सच्चाई है कि केदारनाथ धाम का दक्षिण से बेहद करीब का रिश्ता है। केदारनाथ में मुख्य पुजारी दक्षिण के शैव लिंगायत समुदाय के रावल हैं, जबकि बदरीनाथ में मुख्य पुजारी केरल के नंबोदरी ब्राह्मण हैं।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आया था विचार
पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुतबिक, भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में देश की सांस्कृतिक राष्ट्रीय एकता पर जोर दिया गया था। इस बैठक में तमिल संगमम के आयोजन का विचार आया था। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट कहते हैं, केंद्रीय नेतृत्व की ओर से सांस्कृतिक एकता के लिए हमें कुछ कार्यक्रम दिए गए हैं। हमें अपने राज्य के अलावा देश के दूसरे राज्य जिसमें दक्षिण के राज्य प्रमुख हैं, के स्थापना दिवस, उत्सव और सांस्कृतिक आयोजन करने हैं। इसका मुख्य उद्देश्य समूचे राष्ट्र को सांस्कृतिक एवं परंपराओं के जरिये एकता के सूत्र में जोड़ना है।
केदारनाथ ही क्यों ?
समुद्र तल से 3,583 मीटर ऊपर मंदाकिनी के तट पर स्थित चार धाम (चार तीर्थ) में से एक, केदारनाथ भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों (शिव को समर्पित तीर्थ) में से ग्यारहवां है। दक्षिण क्षेत्र का केदारनाथ से धार्मिक रिश्ता है। उनकी केदारधाम में गहरी आस्था है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी केदारनाथ से अलग जुड़ाव है। वह छह बार केदारनाथ आ चुके हैं। तमिल लोग शिव के उपासक हैं। हर साल यात्रा के दौरान तमिलनाडु और कर्नाटक और केरल सहित अन्य दक्षिणी राज्यों के हजारों लोग केदारनाथ आते हैं।
संगमम होने के मायने
सांस्कृतिक परंपराओं और ज्ञान के संगम को संगमम कहा जाता है। काशी-तमिल संगमम के आयोजन के खास मायने हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अभियान को मजबूती देने के लिए संगमम सरीखे आयोजन कर रही है। इसका मुख्य उद्देश्य उत्तर व दक्षिण के ज्ञान और सांस्कृतिक परंपराओं को एक-दूसरे के करीब लाना है। साझा विरासत की समझ बनाना और दोनों क्षेत्रों के लोगों के बीच संबंध को मजबूत करना भी इसका उद्देश्य है।

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