रामनगर (नैनीताल)। दुदबोलि अर्थात दूध की बोली जो हमारी मां से हमको मिली है को कैसे बचाया जाए और नव सृजन की भाषा बनाया जाए ही स्व. मथुरा दत्त मठपाल की हमेशा चिंता का विषय रहा। स्व. मठपाल ने अपनी व्यक्तिगत रचनात्मकता के साथ-साथ सामूहिक रचनात्मकता को जिस प्रकार बढ़ावा दिया इसके लिए वह हमेशा याद किए जाएंगे। यह बात उत्तराखंड के इतिहास और संस्कृति के जानकार प्रोफेसर शेखर पाठक ने कही।
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कुमाऊंनी के वरिष्ठ साहित्यकार मथुरा दत्त मठपाल की पहली पुण्यतिथि पर दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित हुआ। पहले दिन कुमाऊंनी भाषा के वरिष्ठ विद्वानों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उनके साहित्य के साथ याद किया। कार्यक्रम की शुरुआत स्व. मठपाल के चित्र पर पुष्पांजली से हुई। फिर भोर संस्था के संजय रिखाडी, अमित तिवारी, मानसी रावत द्वारा श्री मठपाल की कविताओं की संगीतमय प्रस्तुति से हुई। उज्यावक दगड़ी ढेला की टीम के ज्योति फर्त्याल, प्राची बंगारी, कोमल सत्यवली, हिमानी बंगारी ने उत्तराखण्ड मेरी मातृभूमि समेत कई लोक गीत प्रस्तुत किए। स्व. मठपाल द्वारा निकाले जाने वाली पत्रिका दुदबोलि के नए अंक का विमोचन किया गया। प्रोफेसर शेखर पाठक ने कहा कि उत्तराखंड में ही डेढ़ दर्जन से अधिक भाषाएं, बोलियां बोली जाती हैं। हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा बहुभाषी है। तीन तीन भाषाएं तक लोग सामान्य रूप से बोलते मिल जाएंगे, यह परंपरा मध्य काल से चली आ रही है। मध्यकाल में भी हमारे रचनाकार एक और संस्कृत में लिख रहे थे, दूसरी ओर कुमाउनी, गढ़वाली में भी। हमारे यहां अवधि ब्रज का भी असर साफ-साफ देखा जा सकता है। वरिष्ठ लोकभाषा साहित्यकार प्रयाग जोशी ने हमरि दुदबोलि, हमरि पछ्याण पर कहा कि हमारी लोकभाषाएं ही हमारा अस्तित्व हैं वही हमको बचाएंगी। धर्मेंद्र नेगी ने मठपाल की कविताओं का सस्वर पाठ किया। डॉ. गिरीश चंद पंत ने उपस्थित विद्वतजनों का स्वागत किया गया। वक्ताओं में कुमाऊंनी के वरिष्ठ कवि गोपाल दत्त भट्ट, उत्तर महिला पत्रिका की संपादक डॉ. उमा भट्ट, विप्लवी किसान पत्रिका के संपादक पुरुषोत्तम शर्मा, पहरू संपादक हयात सिंह रावत, फिल्मकार पुष्पा रावत, पत्रकार राजीव लोचन शाह, नीरज बबाड़ी, डॉ. प्रभा पंत, जगदीश जोशी आदि रहे।
उत्तराखंडी साहित्य का स्टाल रहा आकर्षण का केंद्र
कार्यक्रम के दौरान उत्तराखंड की लोक भाषाओं के साहित्यकारों की पुस्तकों का स्टॉल आकर्षण का केंद्र रहा। स्टॉल में स्व. मथुरादत्त मठपाल की कृतियों, दुदबोलि पत्रिका के सभी अंकों के साथ साथ गोपाल दत्त भट्ट, जगदीश जोशी समेत अन्य रचनाकारों की पुस्तकें, पहरू, आदली कुशली, कुमगढ़ जैसी कुमाऊंनी पत्रिकाएं मौजूद रहीं। सम्मेलन में एक प्रस्ताव पास कर तय किया गया कि मठपाल की पुण्यतिथि नौ मई को अब प्रत्येक वर्ष दुदबोलि दिवस के रूप में मनाई जाएगी। इसके अलावा उत्तराखंड की बोलियों कुमाऊंनी, गढ़वाली आदि को संविधान की 8वीं अनुसूची में लिए जाने की मांग भी की गई।
मठपाल ने सामूहिक रचनात्मकता को भी बढ़ावा दिया
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