Sunday, November 10, 2024
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नानी-दादी की कहानियों का मुख्य किरदार रही इस चिरैया पर मंडरा रहा खतरा

कभी राष्ट्रीय पक्षी बनने की दौड़ में शामिल रही और नाना-नानी की कहानियां की मुख्य किरदार रही सोन चिरैया देश में विलुप्त होने की कगार पर है। कभी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों में बहुतायत में पाए जाने वाले ग्रेट इंडियन बस्टर्ड यानी सोन चिरैया के विलुप्त होने का खतरा इस कदर मंडरा रहा है कि देश में इसकी संख्या मात्र 150 बची है। फिलहाल ग्रेट इंडियन बस्टर्ड राजस्थान के जैसलमेर में पाए जाते हैं।
वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ ही इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने इस खूबसूरत पक्षी के अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरों को देखते हुए सोन चिरैया को लाल श्रेणी के पक्षियों में शामिल कर लिया है। इसे विलुप्त होने से बचाया जा सके, इसके लिए मंत्रालय की पहल पर भारतीय वन्यजीव संस्थान के पक्षी विज्ञानियों और राजस्थान वन विभाग के विशेषज्ञों की ओर से इनके संरक्षण को लेकर कई कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।
राजस्थान के जैसलमेर स्थित मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान में ब्रीडिंग सेंटर भी स्थापित किया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के पक्षी विज्ञानियों के मुताबिक साल 1959 में देश में सोन चिरैया की संख्या 1260 के आसपास थी। साल दर साल इनकी संख्या कम होती गई। फिलहाल पूरे देश में सिर्फ 150 सोन चिरैया बचे हुए हैं, जो चिंताजनक है।
पाकिस्तान से विलुप्त हो चुका है ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पक्षी
विज्ञानियों की मानें तो ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सिर्फ पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी पाए जाते थे। वहां अत्यधिक शिकार के चलते यह दुर्लभ पक्षी पूरी तरह विलुप्त हो चुका है।
शिकार और हादसों से कम हुए पक्षी
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ पक्षी विज्ञानी डॉ. सुतीर्थ दत्ता की मानें तो ग्रेट इंडियन बस्टर्ड शिकार होने, देखने की क्षमता बेहद कम होने की वजह से ये हाईटेंशन लाइनों से टकराकर जान गवांने और पर्यावरण में आए बदलाव के चलते इनके प्राकृतिक पर्यावास खत्म होने से कम होते गए। यह जमीन पर अंडे देते हैैं। दो साल में औसतन एक अंडे देते हैं। जिसमें अंडों के 70 फीसदी खत्म होने की संभावना रहती है। जिसकी वजह से ये कम होते चले गए।
उड़ने वाले पक्षियों में सबसे वजनी होता है
पक्षी विज्ञानियों की मानें तो ग्रेट इंडियन बस्टर्ड उड़ने वाले पक्षियों में सबसे भारी भरकम पक्षी है। शुतुरमुर्ग की तरह एक मीटर ऊंचाई वाले ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का वजन औसतन दस से 15 किलोग्राम होता है। यही वजह है कि इसे एक बार उड़ान भरने में तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और यदि उड़ते समय अचानक इनके सामने बिजली के तार या कुछ और अवरोध आ जाता है तो ये खुद को नहीं बचा पाते हैं और हादसों का शिकार हो जाते हैं।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, सोन चिरइया, हुकना, गोडावण के नाम से कई नामों से हैं चर्चित
बता दें कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को सोन चिरइया, हुकना, गोडावण के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान सरकार ने तो ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को अपने राज्य पक्षी का दर्जा दिया है। राजस्थान वन विभाग की ओर से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण को लेकर कई योजनाएं चलाई जा रही है।
बस्टर्ड नाम होने की वजह से नहीं मिली पाया था राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा
पक्षी विज्ञानियों की मानें तो ग्रेट इंडियन बस्टर्ड कभी राष्ट्रीय पक्षी बनने की दौड़ में शामिल था, लेकिन इसके नाम में बस्टर्ड नाम शामिल होने की वजह से यह राष्ट्रीय पक्षी नहीं बन पाया और राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा मोर को दे दिया गया था।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण को लेकर राजस्थान वन विभाग समेत कई संगठनों की मदद से इनके संरक्षण को लेकर कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसको संरक्षित किया जा सके, इसके लिए मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान में ब्रीडिंग सेंटर स्थापित किया गया है। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की संख्या देश में सिर्फ 150 है। आईयूसीएन ने तो ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को लाल सूची में शामिल किया है। डॉ. सुतीर्थ दत्ता, वरिष्ठ पक्षी विज्ञानी, भारतीय वन्यजीव संस्थान

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