उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश कहा तो जाता है लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता। ऊर्जा प्रदेश की स्थिति ये है कि वो अपनी सालाना जरूरत का बिजली उत्पादन तक नहीं कर पा रहा है। राज्य की सालाना कुल बिजली जरूरत 14 हजार मिलियन यूनिट है। वहीं, उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड इस जरूरत के मुकाबले सिर्फ 4900 एमयू बिजली ही पैदा कर पा रहा है।
शेष मांग को केंद्रीय पूल, बाजार और गैस आधारित बिजली परियोजनाओं से पूरा किया जा रहा है। केंद्रीय पूल से 35 प्रतिशत बिजली मिल पाती है। इसमें एनटीपीसी, एनएचपीसी, कोल आधारित परियोजनाओं से बिजली मिल पाती है। 12 %बिजली गैस आधारित परियोजनाओं से मिलती है। 13 प्रतिशत बिजली बाजार से जुटाई जाती है। इन तमाम विकल्पों से बिजली जुटाने पर सालाना छह हजार से करोड़ से अधिक का खर्चा आता है। केंद्रीय एजेंसियों को समय पर बिजली का भुगतान न करने पर लेट पेमेंट भी देना पड़ता है।
बिजली संकट दूर करने को शॉर्ट टर्म टेंडर
अचानक गर्मी बढ़ने से राज्य में बिजली की मांग बढ़ गई है। इस बार मार्च अंतिम सप्ताह में ही बिजली की मांग 40 मिलियन यूनिट को पार कर गई है। जबकि बिजली की उपलब्धता 32 मिलियन यूनिट के करीब ही है। शेष आठ मिलियन यूनिट की पूर्ति ऊर्जा निगम बाजार से कर रहा है। बाजार में भी बिजली के भाव इस बार रिकॉर्ड 20 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच गए हैं। जो कि उच्च स्तर है। बाजार में 20 रुपये प्रति यूनिट से अधिक बिजली न तो खरीदी जा सकती है और न ही बेची जा सकती है।
उद्योगों को अधिक दिक्कत
राज्य में बिजली कटौती का संकट उद्योगों को भी झेलना पड़ रहा है। हरिद्वार, यूएसनगर के उद्योगों को तो पिछले पांच दिनों से बिजली कटौती की समस्या झेलनी ही पड़ रही है। रविवार को देहरादून सेलाकुईं में भी उद्योगों में बिजली कटौती करनी पड़ी। इसके साथ ही लाइन मेंटनेंस के नाम पर भी शहर के कई बड़े हिस्सों में भी बिजली कटौती की गई।
बिजली की सालाना मांग 14 हजार मिलियन यूनिट है। राज्य के स्रोत से 4900 एमयू बिजली ही मिल पा रही है। केंद्रीय पूल से बिजली जुटाने के बाद भी बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है। –अनिल कुमार, एमडी यूपीसीएल
यह कैसा ऊर्जा प्रदेश! छह हजार करोड़ की बिजली खरीद के बावजूद संकट जारी
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