नैनीताल। उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य एवं संपदाओं से संपन्न है लेकिन मानवीय क्रिया-कलापों से प्रकृति के साथ संतुलन बिगड़ने से यहां प्रकृति का रौद्र रूप भी सामने आता रहता है। ऐसे में यह संतुलन जरूरी है कि विकास ऐसा हो जो विनाश का कारण न बने। यह बात राज्यपाल व कुलाधिपति ले. जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) ने कुमाऊं विश्वविद्यालय के जियोलॉजी विभाग की ओर से जियोहजार्ड रिस्क असेसमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट ऑफ़ उत्तराखंड हिमालय विषय पर संगोष्ठी को वर्चुअल संबोधित करते हुए कही। राज्यपाल ने कहा कि खतरे कम करने के लिए राज्य को भूमि उपयोग योजना, पूर्व चेतावनी प्रणाली, पूर्वानुमान, निगरानी और आपातकालीन उपायों की आवश्यकता है। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. एनके जोशी ने राज्य की विशिष्ट परिस्थितियों के दृष्टिगत प्रदेश में आपदा नीति निर्धारण लिए विशेष कदम उठाने की बात कही। सुभाष चंद्र बोस राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन पुरस्कार एवं राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित डॉ. पीयूष रौतेला ने कहा कि आपदाओं को रोका नहीं जा सकता है। गोष्ठी को वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक डॉ. अशोक सिंह, प्रो. सीसी पंत, डॉ. बीएस कोटलिया, डॉ. आनंद शर्मा, डॉ. एके पांडेय, डॉ. टीआर मरथा, प्रो. एसएन लाभ ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. प्रदीप गोस्वामी ने अतिथियों का स्वागत कर गोष्ठी की रूपरेखा प्रस्तुत की। यहां निदेशक आइक्वैक प्रोफेसर राजीव उपाध्याय, प्रोफेसर संतोष कुमार आदि मौजूद रहे। संचालन डॉ. रितेश साह ने किया।
विकास ऐसा हो, जो विनाश का कारण न बने: राज्यपाल
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