कहने को तो सरकारी मशीनरी भले दावा करती रहती है कि, राजधानी में फुटपाथ हैं और सड़क साफ है, मगर हकीकत इससे उलट है। बात अगर पलटन बाजार व धामावाला बाजार की करें तो यहां फुटपाथ तो दूर की बात, सड़क तक नजर नहीं आती। घंटाघर से लक्खीबाग पुलिस चौकी तक डेढ़ किमी में ऐसा कोई स्थान नहीं, जहां फुटपाथ पर कब्जा न हो।सरकारी मशीनरी खामोश है। यही वजह है कि अगस्त 2018 में हाईकोर्ट ने संज्ञान लेकर फुटपाथ खाली कराने को बाकायदा कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति की थी। सरकार ने उस समय कुछ जगह इच्छाशक्ति दिखाते हुए कार्रवाई की थी लेकिन समय के साथ फुटपाथ फिर कब्जे में आ गए। वर्ष 2019 में फिर प्रशासन का डंडा चला मगर 2020 में कोरोना के कारण मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया।
पलटन बाजार व धामावाला की स्थिति पर नजर डालें तो कोई हिस्सा ऐसा नहीं है, जहां अतिक्रमण फैला न हो। सड़क हो या फुटपाथ। हाल बुरे हैं। वाहनों का सड़कों से गुजरना मुश्किल हो चुका है जबकि पैदल चलने वाले जगह की तलाश करते रहते हैं कि कहां चलें। शहर के मुख्य बाजारों में शुमार पलटन बाजार, धामावाला व पीपलमंडी में फुटपाथ पर पूरा बाजार ही सजा हुआ है। भीड़ के कारण सुबह से रात तक पैक रहने वाले इस बाजार में आमजन को पैदल चलने लायक जगह मयस्सर नहीं है। हर तरफ अतिक्रमण और अवैध कब्जों की भरमार है। फुटपाथ पर बाजार सजा है। कहीं, व्यापारी का कब्जा है तो कहीं रेहड़ी, फड़ वालों का। इससे भी हैरानी वाली बात तो यह कि यहां फुटपाथ का सौदा हो रहा।
फुटपाथ का होता है सौदा
राजधानी में फुटपाथ पर अतिक्रमण को लेकर सरकारी मशीनरी सालों से तमाशबीन बनी हुई है। अतिक्रमण हटाने के दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। हालात ये हैं कि पैदल चलने वाले खुद के लिए जगह तलाशते रहते हैं। फुटपाथों पर दुकानें सजी रहती हैं। जहां दुकान नहीं है, वहां फल-सब्जी, रेहड़ी, फड़ वाले कब्जा किए बैठे हैं। हद तो ये है कि, मेन बाजार में बने फुटपाथ का व्यापारी ‘सौदा’ करते हैं। दुकान के बाहर फड़-रेहड़ी लगाने का बाकायदा पैसा वसूला जाता है। दुकानदार ही नहीं सरकारी मशीनरी पर भी वसूली के आरोप लगते रहे हैं।
ये फुटपाथ हमारा है : देहरादून में फुटपाथ पर सजा बाजार, पैदल चलने लायक जगह नहीं, आमजन लाचार
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