जंगलों में आग लगने के लिहाज से पीक सीजन माने जाने वाले समय में पांच हजार से ज्यादा वन प्रहरियों की छुट्टी कर दी है। प्रहरियों के मानदेय देने के लिए बजट नहीं मिलने के कारण यह फैसला लिया गया है। प्रहरियों को हटाए जाने के बाद जंगलों की आग पर काबू पाने में वन विभाग को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
पलायन रोकने के लिए हुई थी बहाली
वन विभाग ने करीब सात माह पहले सभी डिवीजनों में वन प्रहरियों की तैनाती की थी। इसमें स्थानीय युवाओं को वन और वन्यजीव संरक्षण, गश्त, जंगलों की आग बुझाने आदि में विभाग की मदद करनी थी। उन्हें 8 हजार रुपये प्रतिमाह का मानदेय दिया जा रहा था। इसके लिए कैंपा से बजट की व्यवस्था की गई थी। इसके पीछे राज्य में पलायन रोकने और युवाओं को वन संरक्षण के साथ ही गांवों के आसपास रोजगार देने की भी मंशा थी। ऐसे में बड़ी संख्या में युवा शहरों में होटल, दुकानों की नौकरी या अपने छोटे-मोटे काम धंधे छोड़कर वन प्रहरी बन गए थे। लेकिन 31 मार्च को सभी की सेवाएं समाप्त कर दी गईं। इसके पीछे कैंपा के बजट की वित्तीय वर्ष 2012-2022 तक ही स्वीकृति मिलना बताया गया। लेकिन सरकार के इस रवैये से एक झटके में ही पांच हजार से ज्यादा युवा पूरी तरह से बेरोजगार हो गए।
वन प्रहरियों को हटाने का विरोध
वन विभाग में हर साल हजारों हेक्टेयर जंगल सिर्फ इसलिए जल जाते हैं कि विभाग के पास कर्मचारियों की कमी है। इसके बावजूद इन वन प्रहरियों को पीक फायर सीजन में हटाने से विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों में भी नाराजगी है। सहायक वन कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष इंद्र मोहन कोठारी का कहना है कि विभाग आग बुझाने के लिए इतने की मानदेय में फायर वाचर तो रखे जा रहे हैं, जबकि वन प्रहरी भी यही काम कर रहे थे। उन्हें वनाग्नि के बजट से मानदेय दिया जा सकता था।
2500 किलोमीटर है फायर लाइन राज्य में
वन अधिकारियों ने बताया कि प्रतिवर्ष लगभग 36 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र में वनाग्नि को रोकने के लिए नियंत्रित तरीके से आग लगाई जाती है। करीब 2700 किमी फायर लाइन का रखरखाव किया जाता है। स्थानीय निवासियों से प्रतिवर्ष लगभग 7000 फायर वाचर अग्निकाल में लगाए जाते हैं। 40 मास्टर कंट्रोल रूम, 1317 क्रू स्टेशन और 174 वाच टावर स्थापित किए गए हैं।
क्या कहते हैं पदाधिकारी
हमने अपने डिवीजन में जो भी वन प्रहरी रखे थे वो 31 मार्च को हटा दिए। ये पांच माह की ही योजना थी। हमें 31 मार्च तक ही इसके लिए कैंपा के तहत बजट मिल रहा था। -नितीश मणि त्रिपाठी, डीएफओ देहरादून
उत्तराखंड में हजारों वन प्रहरियों की छुट्टी, बजट नहीं मिलने की वजह से फैसला
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